भारतीय संविधान की अनुसूची 3: शपथ और प्रतिज्ञाएँ
परिचय
भारतीय संविधान की अनुसूची 3 (Schedule 3) उन पदों पर नियुक्त व्यक्तियों द्वारा ली जाने वाली शपथ (Oath) और प्रतिज्ञाओं (Affirmations) को निर्दिष्ट करती है। यह शपथ भारत की संप्रभुता, अखंडता और संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
अनुसूची 3 के अंतर्गत शपथ लेने वाले पदाधिकारी
इस अनुसूची के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्तियों के लिए शपथ या प्रतिज्ञा का प्रारूप निर्धारित किया गया है:
- संसद के सदस्य (Members of Parliament – Lok Sabha & Rajya Sabha)
- राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों के सदस्य
- केंद्र सरकार के मंत्री (Ministers of the Union Government)
- राज्य सरकार के मंत्री (Ministers of State Governments)
- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश (Judges of the Supreme Court & High Courts)
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India – CAG)
शपथ या प्रतिज्ञा का महत्व
- यह सुनिश्चित करती है कि पदधारी संविधान और कानूनों का पालन करेंगे।
- इसमें भारत की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखने की शपथ ली जाती है।
- न्यायाधीश और CAG को निष्पक्षता और कर्तव्यनिष्ठा की शपथ लेनी होती है।
शपथ या प्रतिज्ञा के प्रकार
अनुसूची 3 में विभिन्न पदधारकों के लिए अलग-अलग शपथ प्रारूप दिए गए हैं:
1. मंत्रियों (केंद्र और राज्य) की शपथ
(i) सत्यनिष्ठा की शपथ:
“मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखूँगा, और मैं मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा।”
(ii) गोपनीयता की शपथ:
“मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय मंत्री के रूप में मेरे विचार में आएंगे या मुझे ज्ञात होंगे, उन्हें किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तब तक नहीं बताऊंगा जब तक कि ऐसा करना मेरे कर्तव्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक न हो।”
2. सांसदों (लोकसभा और राज्यसभा) की शपथ
“मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, और जो कर्तव्य लोकसभा/राज्यसभा के सदस्य के रूप में मुझे सौंपे गए हैं, उन्हें श्रद्धा और निष्ठा से निभाऊँगा।”
3. राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों के सदस्यों की शपथ
- यह शपथ सांसदों के समान होती है, लेकिन यह राज्य के विधायी सदस्यों के लिए होती है।
4. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की शपथ
“मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, भारत की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखूँगा, और मैं न्यायिक पद के कर्तव्यों का ईमानदारी, निष्ठा और निष्पक्षता से निर्वहन करूँगा।”
5. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की शपथ
“मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, और मैं अपने कर्तव्यों का ईमानदारी और निष्पक्षता से निर्वहन करूँगा।”
शपथ ग्रहण कौन कराता है?
- राष्ट्रपति: प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और CAG की शपथ दिलाते हैं।
- गवर्नर: राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य मंत्रियों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की शपथ दिलाते हैं।
- लोकसभा अध्यक्ष: लोकसभा सदस्यों की शपथ दिलाते हैं।
- राज्यपाल/विधानसभा अध्यक्ष: राज्य के विधायकों को शपथ दिलाते हैं।
संविधान संशोधन और अनुसूची 3 में बदलाव
शपथ के प्रारूप में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन कुछ संशोधनों में इसे और स्पष्ट किया गया है।
- 42वां संविधान संशोधन (1976): भारत की संप्रभुता और अखंडता को शपथ का अनिवार्य भाग बनाया गया।
- संविधान (94वां संशोधन) अधिनियम, 2006: कुछ पदों की शपथ में संशोधन।
निष्कर्ष
अनुसूची 3 भारतीय लोकतंत्र और प्रशासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करती है कि सभी पदाधिकारी संविधान के प्रति निष्ठावान रहें और अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करें।
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