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Prohibition of Child Marriage Act, 2006 धारा 6: संरक्षकता (Custody) से संबंधित प्रावधान

Prohibition of Child Marriage Act, 2006 की धारा 6 उन मामलों में बच्चे की संरक्षकता (Custody) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करती है, जहां विवाह को शून्य (Void) या शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया गया हो।

धारा 6 के प्रमुख प्रावधान:

  1. बाल विवाह के बाद जन्मे बच्चे की संरक्षकता:
    • यदि कोई बाल विवाह शून्य (Void) या शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया जाता है, तो उस विवाह से जन्मे बच्चे की संरक्षकता का निर्णय न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
    • न्यायालय यह देखेगा कि बच्चे का सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child) किसमें है और उसी के आधार पर संरक्षकता (Custody) का आदेश देगा।
  2. संरक्षकता का अधिकार किसे मिलेगा?
    • न्यायालय माता, पिता, या किसी अन्य उपयुक्त व्यक्ति को संरक्षक घोषित कर सकता है।
    • यदि माता सक्षम और इच्छुक है, तो न्यायालय आमतौर पर बच्चे की संरक्षकता माता को सौंप सकता है।
    • यदि माता सक्षम नहीं है, तो न्यायालय किसी अन्य रिश्तेदार या सरकारी बाल संरक्षण संस्थान (Child Welfare Institution) को भी संरक्षक बना सकता है।
  3. बच्चे का भरण-पोषण (Maintenance) का प्रावधान:
    • यदि न्यायालय बच्चे की संरक्षकता माता को देता है, तो वह पिता या संबंधित पक्ष को भरण-पोषण (Maintenance) देने का आदेश दे सकता है।
    • न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे को उचित देखभाल, शिक्षा और पालन-पोषण मिले।

महत्व:

  • यह धारा बच्चे के अधिकारों की रक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई विवाह शून्य घोषित किया जाता है, तो भी बच्चे के भविष्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
  • यह प्रावधान बच्चों के भरण-पोषण और संरक्षकता को लेकर न्यायालय को आवश्यक अधिकार देता है।

निष्कर्ष:

धारा 6 यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई बाल विवाह शून्य या शून्यकरणीय घोषित होता है, तो भी उस विवाह से जन्मे बच्चे के अधिकार सुरक्षित रहें। न्यायालय बच्चे की संरक्षकता, देखभाल और भरण-पोषण के संबंध में उचित आदेश जारी कर सकता है।

अगर आपको इस धारा की और विस्तृत जानकारी चाहिए, तो बताइए!


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