Prohibition of Child Marriage Act, 2006 की धारा 4 उन बच्चों के संरक्षण और पुनर्वास से संबंधित है, जिनका विवाह बाल्यावस्था में कर दिया गया हो। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि बाल विवाह के शिकार व्यक्ति को उचित सुरक्षा और आवश्यक सहायता मिले।
धारा 4 के प्रमुख प्रावधान:
- संरक्षण और भरण-पोषण का अधिकार:
- यदि किसी लड़की या लड़के का विवाह बाल्यावस्था में कर दिया गया है और विवाह को शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया जाता है, तो न्यायालय पीड़ित को भरण-पोषण (Maintenance) देने का आदेश दे सकता है।
- यह भरण-पोषण लड़की, लड़के या उनके अभिभावकों द्वारा दिया जा सकता है।
- निवास (Residence) की व्यवस्था:
- यदि कोई बाल वधू (नाबालिग लड़की) अपने माता-पिता या ससुराल में नहीं रहना चाहती, तो न्यायालय उसे किसी सुरक्षित स्थान, जैसे पुनर्वास केंद्र या महिला आश्रय गृह (Shelter Home) में भेज सकता है।
- लड़की के संरक्षण और पुनर्वास के लिए राज्य सरकार भी आवश्यक कदम उठा सकती है।
- पुनर्वास (Rehabilitation) के लिए न्यायालय का आदेश:
- यदि लड़की आर्थिक रूप से कमजोर है या उसके पास कोई सहारा नहीं है, तो न्यायालय उसे सरकार द्वारा संचालित पुनर्वास योजनाओं का लाभ दिलाने का आदेश दे सकता है।
- यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि लड़की सक्षम न हो जाए या उसका पुनर्वास उचित रूप से न हो जाए।
महत्व:
- यह धारा सुनिश्चित करती है कि बाल विवाह से पीड़ित व्यक्ति को न्याय और संरक्षण मिले।
- यह उन माता-पिता या पति को उत्तरदायी ठहराती है जिन्होंने बाल विवाह करवाया है और उन्हें पीड़ित के भरण-पोषण और पुनर्वास की जिम्मेदारी दी जाती है।
- यह प्रावधान किशोरियों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
धारा 4 उन पीड़ित बच्चों को राहत देने का कार्य करती है जो बाल विवाह का शिकार हुए हैं और उनके पास कोई सहारा नहीं है। न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह पीड़ित को सुरक्षित स्थान पर रहने की व्यवस्था करे और उसे भरण-पोषण देने का आदेश दे।
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