Prohibition of Child Marriage Act, 2006 की धारा 3 यह प्रावधान करती है कि बाल विवाह को शून्यकरणीय (Voidable) घोषित किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि पीड़ित पक्ष इसे रद्द करने के लिए न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
धारा 3 का विवरण:
- बाल विवाह को निरस्त करने का अधिकार:
- यदि किसी व्यक्ति का विवाह 18 वर्ष (लड़की) या 21 वर्ष (लड़का) से कम उम्र में हुआ है, तो वह विवाह शून्यकरणीय (Voidable) होगा।
- पीड़ित पक्ष (बाल वधू या बाल वर) विवाह को रद्द करवाने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है।
- आवेदन की समय-सीमा:
- विवाह को शून्य घोषित करने के लिए याचिका दायर करने की समय-सीमा 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के दो साल के भीतर होती है।
- यानी लड़की 20 वर्ष की उम्र तक और लड़का 23 वर्ष की उम्र तक यह याचिका दायर कर सकता है।
- न्यायालय का अधिकार:
- परिवार न्यायालय (Family Court) या सक्षम सिविल न्यायालय (District Court) को अधिकार है कि वह बाल विवाह को शून्य घोषित करे।
- संरक्षण और पुनर्वास:
- यदि विवाह निरस्त किया जाता है, तो न्यायालय बाल वधू या बाल वर के पुनर्वास के लिए आवश्यक आदेश दे सकता है।
- इसमें रहने की व्यवस्था, भरण-पोषण (Maintenance) और संरक्षकता (Custody) से संबंधित निर्देश शामिल हो सकते हैं।
महत्व:
- यह धारा बाल विवाह के शिकार व्यक्तियों को यह अधिकार देती है कि वे विवाह से बाहर निकल सकें।
- यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों पर विवाह थोपने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सके।
- यह प्रावधान महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) और बच्चों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
नोट:
- कुछ विशेष परिस्थितियों में, धारा 12 के तहत बाल विवाह को पूरी तरह से शून्य (Void) भी घोषित किया जा सकता है।
- अगर बाल विवाह के दौरान किसी नाबालिग का शोषण हुआ है, तो इस धारा के तहत कड़ी कार्रवाई संभव है।
अगर आपको इस धारा की और विस्तृत जानकारी चाहिए, तो बताइए!
Leave a Reply