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मुस्लिम विवाह और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ( Muslim marriage and Supreme Court’s historic judgement )

मुस्लिम विवाह और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले: प्रमुख न्यायिक निर्णय

मुस्लिम विवाह (Nikah) एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट (Civil Contract) होता है, जिसे इस्लामी कानूनों (Sharia Law) के तहत माना जाता है। हालांकि, भारत में कई ऐसे कानूनी विवाद और मामले सामने आए, जिनमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह से जुड़े अहम फैसले दिए। इन फैसलों ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार, तलाक, भरण-पोषण (Maintenance), और संपत्ति अधिकारों को लेकर महत्वपूर्ण संवैधानिक व्याख्या की है।


1. शाह बानो केस (Shah Bano Case, 1985)

भरण-पोषण (Maintenance) और मुस्लिम महिलाओं के अधिकार

मामला:
शाह बानो, एक 62 वर्षीय मुस्लिम महिला, को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने तीन तलाक देकर छोड़ दिया। तलाक के बाद, उन्होंने भरण-पोषण (Maintenance) के लिए अदालत में याचिका दायर की

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • ✔ कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी भरण-पोषण का अधिकार है, और उन्हें CrPC (धारा 125) के तहत अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता (Alimony) मिलना चाहिए
  • ✔ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी धर्म की परवाह किए बिना, यदि कोई महिला खुद को पालने में असमर्थ है, तो उसका पति उसे आर्थिक सहायता देने के लिए बाध्य है
  • ✔ इस फैसले का मुस्लिम समुदाय में व्यापक विरोध हुआ, जिसके बाद सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम पारित किया, जिसने इस फैसले के प्रभाव को कम कर दिया।

2. दानियल लतीफी केस (Danial Latifi Case, 2001)

मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं का भरण-पोषण (Maintenance) का अधिकार

मामला:
शाह बानो केस के बाद सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम के तहत, मुस्लिम महिलाओं को केवल “इद्दत” (Iddat) की अवधि तक ही भरण-पोषण का अधिकार दिया गया

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • ✔ कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला को “इद्दत” अवधि के बाद भी आजीवन भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है, यदि वह खुद से जीविका नहीं चला सकती।
  • ✔ इस फैसले ने शाह बानो मामले के न्यायिक सिद्धांत को मजबूत किया, और यह सुनिश्चित किया कि मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण के मामले में न्याय मिले।

3. शायरा बानो केस (Triple Talaq Case, 2017)

तीन तलाक (Triple Talaq) को असंवैधानिक घोषित किया गया

मामला:
शायरा बानो को उनके पति ने “तलाक-ए-बिद्दत” (Instant Triple Talaq) के जरिए तलाक दिया। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया
  • ✔ कोर्ट ने कहा कि तलाक-ए-बिद्दत इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन करता है।
  • ✔ इस फैसले के बाद, 2019 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम पास किया गया, जिसमें तीन तलाक को अपराध घोषित किया गया और इसे देने वाले व्यक्ति के लिए 3 साल की सजा का प्रावधान रखा गया

4. सरला मुद्गल केस (Sarala Mudgal Case, 1995)

धर्म परिवर्तन और दूसरी शादी की वैधता

मामला:
इस केस में यह मुद्दा उठा कि क्या कोई हिंदू पुरुष सिर्फ दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम अपना सकता है?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • ✔ कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपनाता है, तो यह कानून का दुरुपयोग माना जाएगा
  • ✔ ऐसे मामलों में पहली पत्नी को न्यायिक संरक्षण मिलेगा और उसे भरण-पोषण का अधिकार होगा
  • ✔ कोर्ट ने कॉमन सिविल कोड (Uniform Civil Code – UCC) की आवश्यकता पर जोर दिया

5. शबनम हाशमी बनाम भारत सरकार (Shabnam Hashmi Case, 2014)

मुस्लिम व्यक्ति को गोद लेने का अधिकार

मामला:
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, मुस्लिम धर्म में “गोद लेना” (Adoption) की अनुमति नहीं है। शबनम हाशमी ने अदालत से मुस्लिम दंपतियों के लिए गोद लेने के अधिकार की मांग की

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
“जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000” के तहत मुस्लिम दंपति भी कानूनी रूप से बच्चे को गोद ले सकते हैं
✔ यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ पर लागू नहीं हुआ, लेकिन नागरिक कानूनों (Secular Laws) को मुस्लिमों के लिए भी खुला कर दिया


6. ताहिरा बिबी बनाम भारत सरकार (Tahir Bibi Case, 2019)

पति द्वारा दूसरी शादी और पहली पत्नी के अधिकार

मामला:
ताहिरा बिबी ने अदालत में दावा किया कि उनके पति ने दूसरी शादी कर ली और उन्हें भरण-पोषण नहीं दे रहा

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
✔ कोर्ट ने कहा कि यदि मुस्लिम पुरुष दूसरी शादी करता है और पहली पत्नी को छोड़ देता है, तो उसे पहली पत्नी का भरण-पोषण सुनिश्चित करना होगा
✔ कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि दूसरी शादी करने से पहली पत्नी को मानसिक या आर्थिक नुकसान होता है, तो इसे “क्रूरता” माना जाएगा और पत्नी को तलाक का अधिकार होगा


निष्कर्ष

  • सुप्रीम कोर्ट के इन ऐतिहासिक फैसलों ने मुस्लिम विवाह, तलाक, और महिलाओं के अधिकारों को लेकर भारतीय संविधान के तहत न्यायिक संतुलन स्थापित किया है
  • तीन तलाक को खत्म करने, भरण-पोषण के अधिकार को सुरक्षित करने, और धर्म परिवर्तन के दुरुपयोग को रोकने जैसे कई अहम मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिए
  • इन फैसलों से मुस्लिम महिलाओं को कानूनी रूप से अधिक अधिकार और सुरक्षा मिली
  • सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में “कॉमन सिविल कोड (UCC)” लागू करने की जरूरत पर भी जोर दिया

इन न्यायिक फैसलों ने भारत में मुस्लिम विवाह कानूनों को एक नया दृष्टिकोण दिया है, जो महिलाओं के अधिकारों और न्याय के पक्ष में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।

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