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लिव-इन रिलेशनशिप और तलाक (Live-in Relationship and Its Legal Status in India)

भूमिका

लिव-इन रिलेशनशिप यानी बिना शादी किए साथ रहना, भारत में एक विवादास्पद लेकिन स्वीकार्य कानूनी अवधारणा बन गई है। आधुनिक समाज में बढ़ती स्वतंत्रता और बदलती जीवनशैली के कारण कई लोग शादी के बिना साथ रहने को प्राथमिकता दे रहे हैं। लेकिन क्या लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्राप्त है? अगर कोई विवाद हो जाए तो कानूनी अधिकार क्या हैं? इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे:

लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति
लिव-इन पार्टनर्स के अधिकार
अगर रिश्ता टूट जाए तो कानूनी समाधान
लिव-इन से जुड़े कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले


1. लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को सीधे-सीधे वैध (Legal) या अवैध (Illegal) नहीं कहा जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों के अनुसार, यदि दो वयस्क सहमति से एक साथ रहते हैं, तो यह अवैध नहीं माना जाता।

(A) संविधान के अनुसार अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Right to Life and Personal Liberty) – किसी भी वयस्क को अपनी पसंद से जीवन जीने का अधिकार देता है, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – दो वयस्कों का सहमति से साथ रहना “वैवाहिक संबंध” के समान हो सकता है यदि वे लंबे समय तक साथ रहते हैं।

(B) घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005)

✔ इस कानून के तहत लिव-इन पार्टनर भी “पत्नी” की तरह संरक्षण (Protection) और अधिकार मांग सकती है।
✔ यदि पुरुष अपनी लिव-इन पार्टनर के साथ दुर्व्यवहार करता है, तो वह घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर सकती है।

(C) बच्चे की वैधता और अधिकार

✔ यदि लिव-इन पार्टनर के बीच बच्चा जन्म लेता है, तो उसे पूरी कानूनी मान्यता प्राप्त होती है।
✔ सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मा बच्चा वैध संतान (Legitimate Child) माना जाएगा और उसे संपत्ति में अधिकार मिलेगा।


2. लिव-इन पार्टनर्स के कानूनी अधिकार

लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर भारत में अभी भी स्पष्ट कानून नहीं हैं, लेकिन कुछ मौजूदा कानूनी प्रावधानों और अदालत के फैसलों के अनुसार, निम्नलिखित अधिकार उपलब्ध हैं:

(A) महिला साथी के अधिकार

✔ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला को संरक्षण (Protection), भरण-पोषण (Maintenance) और संपत्ति में अधिकार मिल सकता है।
✔ यदि पुरुष लिव-इन में धोखा देता है या महिला को छोड़ देता है, तो महिला उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकती है।

(B) भरण-पोषण (Maintenance) का अधिकार

✔ अगर लिव-इन पार्टनर को पत्नी के समान दर्जा मिल जाता है, तो महिला को भरण-पोषण (Alimony/Maintenance) मांगने का अधिकार होगा।
✔ लेकिन अगर कोर्ट यह मानती है कि यह संबंध सिर्फ एक अस्थायी या अनैतिक संबंध था, तो महिला को यह अधिकार नहीं मिलेगा।

(C) संपत्ति का अधिकार

✔ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को पुरुष की संपत्ति पर कानूनी अधिकार नहीं होता, जब तक कि यह सिद्ध न हो कि वे लंबे समय तक एक विवाह जैसी स्थिति में रह रहे थे।
✔ हालांकि, लिव-इन से जन्मे बच्चे को पिता की संपत्ति में अधिकार मिलेगा।


3. अगर लिव-इन रिलेशनशिप टूट जाए तो क्या होगा?

अगर कोई लिव-इन रिलेशनशिप टूट जाती है, तो इससे जुड़े कानूनी समाधान इस प्रकार हैं:

(A) भरण-पोषण (Alimony & Maintenance)

✔ अगर कोर्ट मानती है कि यह रिश्ता विवाह जैसा था, तो महिला को भरण-पोषण मिल सकता है
✔ लेकिन अगर कोर्ट इसे सिर्फ एक अस्थायी संबंध मानती है, तो उसे कोई अधिकार नहीं मिलेगा।

(B) घरेलू हिंसा की शिकायत

✔ अगर महिला को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक शोषण हुआ है, तो वह Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 के तहत शिकायत कर सकती है।
✔ कोर्ट महिला को आवास (Right to Residence) और सुरक्षा (Protection Order) दे सकती है।

(C) बच्चे की कस्टडी (Child Custody & Rights)

✔ यदि लिव-इन रिलेशनशिप से बच्चा हुआ है, तो बच्चे की कस्टडी के लिए माता-पिता कोर्ट में दावा कर सकते हैं।
✔ पिता को बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठानी होगी।


4. लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले

(A) खुसबू बनाम कन्नियमल (2010)

✔ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप अनैतिक नहीं है और इसे अवैध नहीं माना जा सकता।

(B) इंद्रा शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा (2013)

✔ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप एक “वैवाहिक संबंध” मानी जा सकती है।
✔ इसमें रहने वाली महिला को भरण-पोषण (Maintenance) का अधिकार हो सकता है।

(C) डी. वेलुस्वामी बनाम डी. पट्टमल (2010)

✔ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि लिव-इन रिलेशनशिप एक “वैवाहिक संबंध” जैसी नहीं है, तो महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलेगा।


5. लिव-इन रिलेशनशिप और तलाक का क्या संबंध है?

✔ लिव-इन रिलेशनशिप में तलाक जैसी कोई प्रक्रिया नहीं होती, क्योंकि यह विवाह नहीं है।
✔ लेकिन अगर कोर्ट इसे विवाह जैसा मान लेती है, तो पति-पत्नी के समान अधिकार और दायित्व लागू हो सकते हैं।
✔ अगर महिला को न्याय नहीं मिलता, तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही कर सकती है।


6. निष्कर्ष (Conclusion)

लिव-इन रिलेशनशिप भारत में गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इसे पूर्ण कानूनी मान्यता भी नहीं मिली है।
✔ अगर यह संबंध लंबे समय तक रहा हो और पति-पत्नी जैसे कर्तव्य निभाए गए हों, तो इसमें रहने वाले व्यक्तियों को कुछ हद तक कानूनी सुरक्षा मिल सकती है।
महिला को घरेलू हिंसा कानून और भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है, लेकिन संपत्ति में सीधा अधिकार नहीं होता।
लिव-इन से जन्मे बच्चों को पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त होता है।
अगर लिव-इन पार्टनर के बीच विवाद होता है, तो उन्हें कानूनी मार्गदर्शन और न्याय पाने के लिए अदालत का सहारा लेना चाहिए।

📌 महत्वपूर्ण सलाह:

अगर आप लिव-इन रिलेशनशिप में हैं या इसमें जाने की योजना बना रहे हैं, तो अपने कानूनी अधिकारों को समझना बहुत जरूरी है। किसी भी समस्या से बचने के लिए कानूनी सलाहकार (Legal Expert) से परामर्श लें और अपने भविष्य को सुरक्षित बनाएं।


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