🔹 अनुच्छेद 31 भारतीय संविधान के मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के भाग III में था, लेकिन 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा इसे हटा दिया गया। पहले यह निजी संपत्ति के अधिकार (Right to Property) को मौलिक अधिकार के रूप में सुरक्षित करता था, लेकिन अब यह एक संवैधानिक कानूनी अधिकार (Legal Right) है।
1️⃣ अनुच्छेद 31: मूल अधिकार के रूप में स्थिति (1950-1978)
संविधान के प्रारंभिक स्वरूप में अनुच्छेद 31 को संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए शामिल किया गया था। इसके अंतर्गत:
- कोई भी व्यक्ति कानूनी रूप से अर्जित संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता था, जब तक कि सरकार उचित प्रक्रिया (due process) और उचित मुआवजा (compensation) न दे।
- सरकार को संपत्ति के अधिग्रहण का अधिकार था, लेकिन अधिग्रहण उचित उद्देश्य (public purpose) के लिए ही होना चाहिए।
- राज्य (State) जबरन किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं छीन सकता था बिना उचित कानूनी प्रक्रिया (Procedure Established by Law) का पालन किए।
2️⃣ अनुच्छेद 31 की प्रमुख धाराएँ (Provisions of Article 31)
धारा | विवरण |
---|---|
अनुच्छेद 31(1) | किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बलपूर्वक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक कि सरकार विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करे। |
अनुच्छेद 31(2) | सरकार को सार्वजनिक उद्देश्य (public purpose) के लिए संपत्ति अधिग्रहित करने का अधिकार था, लेकिन उचित मुआवजा देना आवश्यक था। |
अनुच्छेद 31(3) | यदि कोई राज्य सरकार संपत्ति से संबंधित कोई कानून बनाती है, तो इसे राष्ट्रपति की सहमति (President’s Assent) लेनी होगी। |
अनुच्छेद 31(4) और 31(6) | कुछ राज्य सरकारों को भूमि सुधार (Land Reforms) से संबंधित कानून बनाने के विशेष अधिकार दिए गए। |
3️⃣ अनुच्छेद 31 पर प्रमुख न्यायिक फैसले (Landmark Judgments)
1. केस: Kameshwar Singh v. State of Bihar (1952)
फैसला: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि सरकार संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन उचित मुआवजा देना अनिवार्य है।
2. केस: State of West Bengal v. Bela Banerjee (1954)
फैसला: न्यायालय ने कहा कि संपत्ति के मालिक को उचित और न्यायोचित मुआवजा (Fair Compensation) मिलना चाहिए, केवल “नाममात्र” मुआवजा देना असंवैधानिक होगा।
3. केस: Golaknath v. State of Punjab (1967)
फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि मौलिक अधिकारों में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता, इसलिए संसद को अनुच्छेद 31 में बदलाव करने का अधिकार नहीं था।
4. केस: Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973)
फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) को बदला नहीं जा सकता, लेकिन मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
4️⃣ 44वां संविधान संशोधन, 1978 – अनुच्छेद 31 का निष्कासन
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार ने 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के माध्यम से अनुच्छेद 31 को पूरी तरह से हटा दिया और संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर एक कानूनी अधिकार (Legal Right) बना दिया।
➡ इस संशोधन के बाद:
✔ अब संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं रहा।
✔ संपत्ति से जुड़े विवादों के लिए व्यक्ति केवल अनुच्छेद 300A (Article 300A) के तहत हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।
5️⃣ अनुच्छेद 31 की जगह अनुच्छेद 300A (Right to Property as a Legal Right)
- अब अनुच्छेद 300A भारतीय संविधान में जोड़ा गया है, जो कहता है:
“किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Due Process of Law) के बिना वंचित नहीं किया जाएगा।” - इसका अर्थ यह है कि अब सरकार बिना उचित कानून बनाए किसी की संपत्ति नहीं ले सकती, लेकिन यह मौलिक अधिकार नहीं है।
- यदि सरकार संपत्ति अधिग्रहण करती है, तो पीड़ित सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) या हाईकोर्ट (High Court) में अनुच्छेद 226 के तहत रिट पेटिशन दायर कर सकता है।
6️⃣ निष्कर्ष (Conclusion)
🔹 1950 से 1978 तक: संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार (Fundamental Right) था।
🔹 1978 के बाद: संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार से हटाकर एक कानूनी अधिकार (Legal Right) बना दिया गया।
🔹 अब सरकार संपत्ति अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन संपत्ति के मालिक को अनुच्छेद 300A के तहत केवल कानूनी संरक्षण प्राप्त है।
📌 क्या अब संपत्ति के अधिकार को फिर से मौलिक अधिकार बनाया जा सकता है?
✔ कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संपत्ति का अधिकार फिर से मौलिक अधिकार होना चाहिए, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है।
✔ हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण मामलों में उचित मुआवजा देने पर जोर दिया है।
✔ हालांकि, वर्तमान में इसे दोबारा मौलिक अधिकार बनाने की कोई कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
📢 निष्कर्ष: क्या संपत्ति का अधिकार अभी भी सुरक्षित है?
✔ हां, लेकिन यह अब मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं, बल्कि एक कानूनी अधिकार (Legal Right) है।
✔ अगर सरकार आपकी संपत्ति अधिग्रहित करती है, तो आप अदालत में चुनौती दे सकते हैं, लेकिन यह मौलिक अधिकार का मामला नहीं होगा।
✔ अनुच्छेद 31 को हटाने का असर यह पड़ा कि अब व्यक्ति संपत्ति से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट में सीधे नहीं जा सकता, उसे हाईकोर्ट या अन्य कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा।
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