Legal And Law Advisory

By Learnwithms.in

“आपका कानूनी ज्ञान साथी!”

Home » भारतीय कानून » परिवार से जुड़े कानून » मुस्लिम विवाह कानून » मुस्लिम विवाह में सहमति (Consent) का महत्व ( Importance of Consent in Muslim Marriage )

मुस्लिम विवाह में सहमति (Consent) का महत्व ( Importance of Consent in Muslim Marriage )

मुस्लिम विवाह में सहमति (Consent) का महत्व

परिचय

इस्लामिक विवाह (Nikah) एक नागरिक अनुबंध (Civil Contract) है, जिसमें पति-पत्नी दोनों की सहमति (Consent) आवश्यक होती है। बिना सहमति के विवाह को वैध (Valid) नहीं माना जाता। इस्लामिक कानून में विवाह को “मुआहिदा” (Agreement) कहा गया है, जिसका अर्थ है कि यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक कानूनी समझौता भी है।


1. विवाह में सहमति क्यों आवश्यक है?

✅ इस्लाम में जबरदस्ती विवाह (Forced Marriage) की सख्त मनाही है।
✅ यदि किसी पुरुष या महिला की सहमति के बिना विवाह कराया जाता है, तो वह विवाह अमान्य (Invalid) या फासिद (Irregular) माना जाएगा।
✅ विवाह तभी वैध होता है, जब दोनों पक्ष अपनी स्वतंत्र इच्छा (Free Will) से विवाह के लिए तैयार हों।
✅ शरीयत (Shariat) के अनुसार, विवाह में जबरदस्ती करना या धोखे से विवाह कराना हराम (Prohibited) है।


2. सहमति कैसे दी जाती है?

✔️ “इजाब” (Proposition) – विवाह के लिए एक पक्ष (दूल्हा या दुल्हन) द्वारा प्रस्ताव दिया जाता है।
✔️ “कुबूल” (Acceptance) – दूसरा पक्ष इसे स्वीकार करता है।
✔️ यह प्रक्रिया कम से कम दो गवाहों (Witnesses) की उपस्थिति में होनी चाहिए।


3. यदि विवाह जबरदस्ती किया जाए तो क्या होगा?

❌ यदि किसी पुरुष या महिला की मर्जी के बिना विवाह कर दिया जाता है, तो वह विवाह न्यायालय में रद्द (Annulled) कराया जा सकता है।
❌ इस्लामिक कानून में ऐसे विवाह को फासिद (Irregular) माना जाता है और अगर पत्नी चाहे तो इसे समाप्त कर सकती है।
❌ भारतीय न्यायालय भी जबरन विवाह को अवैध मानता है और पीड़ित पक्ष को सुरक्षा प्रदान करता है।


4. नाबालिग की सहमति और अभिभावक की भूमिका

✅ इस्लाम में अभिभावक (Wali) की सहमति भी महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन अंतिम फैसला वर-वधू का ही होता है।
✅ यदि कोई नाबालिग विवाह करता है, तो उसे बालिग (18 वर्ष की आयु के बाद) होने पर उस विवाह को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार होता है।


5. खियार-उल-बुलूग (बालिग होने पर विवाह को अस्वीकार करने का अधिकार)

✔️ यदि किसी नाबालिग लड़की या लड़के का विवाह उसके अभिभावकों द्वारा कर दिया जाता है, तो उसे बालिग होने पर यह विवाह रद्द करने (Dissolve) का अधिकार होता है।
✔️ इसे “खियार-उल-बुलूग” (Option of Puberty) कहा जाता है।


6. तलाक और विवाह की सहमति का संबंध

✔️ यदि किसी महिला की सहमति के बिना विवाह किया गया है, तो उसे इस विवाह को खुला (Khula) या अदालत के माध्यम से समाप्त करने का अधिकार होता है।
✔️ इस्लाम में पति और पत्नी दोनों को विवाह समाप्त करने का अधिकार दिया गया है।


7. न्यायालय और शरीयत में सहमति का महत्व

⚖️ भारतीय कानून भी विवाह में सहमति को अनिवार्य मानता है। यदि कोई विवाह जबरदस्ती कराया गया हो, तो उसे अदालत में रद्द किया जा सकता है।
⚖️ शरीयत (Shariat) के अनुसार भी विवाह की सहमति अनिवार्य है और इसे कानूनी समझौते की तरह देखा जाता है।


निष्कर्ष

✅ मुस्लिम विवाह में दूल्हा और दुल्हन दोनों की सहमति आवश्यक होती है।
बिना सहमति के विवाह अवैध (Invalid) या अमान्य (Void) हो सकता है।
✅ नाबालिग विवाह के मामले में, बालिग होने के बाद व्यक्ति को विवाह जारी रखने या अस्वीकार करने का अधिकार होता है।
✅ जबरदस्ती विवाह को शरीयत और भारतीय कानून दोनों ही अस्वीकार करते हैं।

इस्लाम में विवाह एक धार्मिक और कानूनी अनुबंध है, जिसमें स्वतंत्र इच्छा और सहमति सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं।

Related Post – Muslim Marriage Law


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *