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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 8: विवाह का पंजीकरण

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 8: विवाह का पंजीकरण (Marriage Registration)

भूमिका:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 8 (Section 8) विवाह के पंजीकरण (Registration) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करती है। इस धारा के अनुसार, सरकार विवाहों के पंजीकरण की सुविधा प्रदान कर सकती है ताकि विवाह का कानूनी रिकॉर्ड मौजूद रहे और भविष्य में कोई विवाद उत्पन्न न हो।


धारा 8 के प्रमुख प्रावधान:

  1. राज्य सरकार का अधिकार:
    • प्रत्येक राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह विवाहों के पंजीकरण के लिए नियम बना सके।
    • राज्य सरकार यह तय कर सकती है कि विवाह पंजीकरण अनिवार्य होगा या वैकल्पिक रहेगा।
  2. विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया:
    • विवाह संपन्न होने के बाद, दंपत्ति (पति-पत्नी) विवाह पंजीकरण के लिए संबंधित अधिकारी (जैसे, उप-पंजीयक या Marriage Registrar) के पास आवेदन कर सकते हैं।
    • आवेदन के साथ विवाह प्रमाण-पत्र (Marriage Certificate) जारी किया जाता है, जो विवाह का कानूनी प्रमाण होता है।
  3. पंजीकरण का लाभ:
    • विवाह प्रमाण-पत्र होने से पति-पत्नी को कानूनी सुरक्षा मिलती है।
    • यह संपत्ति, उत्तराधिकार (inheritance), तलाक, और अन्य कानूनी मामलों में प्रमाण के रूप में उपयोगी होता है।
    • विवाह पंजीकरण विशेष रूप से अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाहों के मामलों में महत्वपूर्ण होता है।
  4. पंजीकरण न करने के प्रभाव:
    • यदि कोई विवाह पंजीकृत नहीं किया गया, तो भी यह अवैध नहीं माना जाएगा, बशर्ते कि विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ हो।
    • हालांकि, बिना पंजीकरण के विवाह को कानूनी रूप से प्रमाणित करना मुश्किल हो सकता है, खासकर संपत्ति विवाद या तलाक के मामलों में।
  5. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
    • सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करने की सिफारिश की थी, ताकि विवाह संबंधी धोखाधड़ी और विवादों को रोका जा सके।
    • कई राज्यों ने इस आदेश के बाद हिंदू विवाहों के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया है।

धारा 8 का उद्देश्य:

  • विवाहों का कानूनी रिकॉर्ड रखना।
  • पति-पत्नी को विवाह का कानूनी प्रमाण प्रदान करना।
  • तलाक, उत्तराधिकार, और संपत्ति विवादों में कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाना।
  • विवाह से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों को रोकना।

निष्कर्ष:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 8 विवाह के पंजीकरण की व्यवस्था करती है, ताकि विवाहों का कानूनी रिकॉर्ड उपलब्ध हो। हालांकि, बिना पंजीकरण के विवाह अवैध नहीं होता, लेकिन पंजीकरण होने से कानूनी अधिकारों की सुरक्षा मिलती है।

आज के समय में, विवाह पंजीकरण को कानूनी रूप से आवश्यक माना जाता है, और कई राज्यों में इसे अनिवार्य कर दिया गया है। यह विवाह को धोखाधड़ी, अवैध संबंधों, और कानूनी विवादों से बचाने का एक प्रभावी तरीका है।


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