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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 7: हिंदू विवाह की वैधता और विधि

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 7: हिंदू विवाह की वैधता और विधि

भूमिका:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 (Section 7) हिंदू विवाह की वैधता (Validity) और उसके संपन्न होने की विधि (Ceremonies) को परिभाषित करती है। इस धारा के अनुसार, हिंदू विवाह को वैध माना जाएगा यदि वह हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ हो।


धारा 7 के प्रमुख प्रावधान:

  1. हिंदू विवाह का संपन्न होना:
    • हिंदू विवाह तभी वैध होगा जब यह हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार संपन्न किया जाए।
    • विवाह की मान्यता के लिए किसी विशेष रीति का पालन आवश्यक नहीं, बल्कि विभिन्न हिंदू समुदायों में प्रचलित विधियों के अनुसार विवाह किया जा सकता है।
  2. सप्तपदी (सात फेरे) की आवश्यकता:
    • अगर कोई विवाह सप्तपदी (सात फेरे) की परंपरा के अनुसार संपन्न होता है, तो तभी उसे पूर्ण और वैध माना जाएगा।
    • सप्तपदी का अर्थ है कि वर (दूल्हा) और वधू (दुल्हन) अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं, और सातवां फेरा पूरा होने पर विवाह पूर्ण हो जाता है।
    • सप्तपदी अधिकतर हिंदू विवाहों का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन कुछ समुदायों में अन्य विधियों से भी विवाह संपन्न होता है।
  3. विभिन्न हिंदू समुदायों में मान्य परंपराएं:
    • हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों में विवाह के अलग-अलग रीति-रिवाज होते हैं, और यह धारा उन सभी को मान्यता प्रदान करती है।
    • यदि किसी समुदाय में कोई विशेष विवाह संस्कार प्रचलित है, तो वह भी मान्य होगा, बशर्ते वह हिंदू रीति से हो।
  4. हिंदू विवाह के लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं:
    • यह धारा विवाह की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता को प्राथमिकता देती है।
    • हालांकि, सरकार ने विवाहों के पंजीकरण (Marriage Registration) को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाए हैं, ताकि वैवाहिक विवादों में कानूनी प्रमाण उपलब्ध हो।

धारा 7 का उद्देश्य:

  • यह सुनिश्चित करना कि हिंदू विवाह पारंपरिक धार्मिक विधियों के अनुसार संपन्न हो।
  • विवाह को सामाजिक और धार्मिक रूप से स्वीकार्य बनाना।
  • विभिन्न हिंदू समुदायों की विवाह परंपराओं को कानूनी मान्यता प्रदान करना।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धारा 7 का महत्व:

  • विवाह की वैधता को सुनिश्चित करने के लिए सप्तपदी और अन्य परंपराओं का पालन करना आवश्यक है।
  • अदालतों में विवाह संबंधी विवादों में यह धारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, विशेष रूप से तब, जब किसी विवाह की वैधता को चुनौती दी जाती है।
  • वर्तमान में, विवाहों की कानूनी मान्यता के लिए उनका पंजीकरण भी आवश्यक माना जाने लगा है, ताकि विवाह प्रमाणपत्र के रूप में कानूनी दस्तावेज उपलब्ध हो।

निष्कर्ष:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 यह निर्धारित करती है कि हिंदू विवाह तभी वैध होगा, जब वह हिंदू धर्म की परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न किया जाए।

इस धारा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू सप्तपदी (सात फेरे) की प्रक्रिया है, क्योंकि हिंदू विवाह में इसे विवाह संपन्न होने की अंतिम और अनिवार्य शर्त माना गया है। हालांकि, विभिन्न हिंदू समुदायों की परंपराओं को भी मान्यता दी गई है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि हर विवाह कानूनी रूप से मान्य और वैध हो।


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