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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 धारा 27 – विवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति का निपटान (Disposal of Property)

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 27: विवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति का निपटान (Disposal of Property)

परिचय:

धारा 27 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि तलाक, विवाह रद्दीकरण या न्यायिक पृथक्करण के बाद पति-पत्नी को विवाह के दौरान मिली संपत्ति का उचित बंटवारा किया जाए।
इसका उद्देश्य यह है कि यदि किसी पक्ष ने विवाह के दौरान उपहार या संपत्ति प्राप्त की है, तो उसे उचित रूप से विभाजित किया जा सके।


धारा 27 के प्रमुख प्रावधान:

1. यह धारा किस प्रकार की संपत्ति पर लागू होती है?

विवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति – विवाह के समय या उसके बाद पति-पत्नी को जो भी उपहार, गहने, नगद धनराशि, चल-अचल संपत्ति या अन्य वस्तुएँ मिली हों।
पति-पत्नी के संयुक्त नाम से खरीदी गई संपत्ति – यदि दोनों ने मिलकर कोई संपत्ति खरीदी हो, तो यह धारा लागू होगी।
उपहार में मिली संपत्ति – यदि विवाह के दौरान किसी भी पक्ष को माता-पिता, रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों से कोई उपहार मिला हो।

उदाहरण: यदि विवाह के दौरान पत्नी को सोने के गहने और नकद राशि उपहार में मिली थी, तो तलाक के बाद यह अदालत तय कर सकती है कि इसका क्या किया जाए।


2. कौन इस धारा के तहत आवेदन कर सकता है?

पति या पत्नी, जो विवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति के बंटवारे के लिए अदालत से आदेश चाहता हो।
✅ यह आवेदन तलाक, विवाह रद्दीकरण, या न्यायिक पृथक्करण की प्रक्रिया के दौरान या उसके बाद किया जा सकता है।

उदाहरण: यदि तलाक के बाद पति किसी संपत्ति पर दावा करता है, जिसे विवाह के दौरान दोनों ने खरीदा था, तो वह धारा 27 के तहत अदालत में आवेदन कर सकता है।


3. अदालत किन बातों को ध्यान में रखेगी?

किस पक्ष को संपत्ति मिली थी और किस उद्देश्य से मिली थी
विवाह के दौरान मिली संपत्ति व्यक्तिगत थी या दोनों की संयुक्त थी
यदि कोई संपत्ति पति-पत्नी ने मिलकर खरीदी थी, तो उसमें किसका कितना योगदान था
पति और पत्नी की आर्थिक स्थिति

महत्वपूर्ण: अदालत यह तय करेगी कि संपत्ति का निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारा हो।


4. क्या पति पत्नी की संपत्ति पर दावा कर सकता है?

✅ यदि कोई संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर है, तो पति इसे बांटने की माँग कर सकता है।
✅ यदि संपत्ति पत्नी को व्यक्तिगत रूप से उपहार में मिली थी (जैसे – पिता द्वारा दिए गए गहने), तो पति इस पर दावा नहीं कर सकता।
✅ इसी प्रकार, यदि कोई संपत्ति पति को व्यक्तिगत रूप से मिली थी, तो पत्नी उस पर दावा नहीं कर सकती।

उदाहरण: यदि पत्नी के माता-पिता ने उसे शादी में गहने दिए थे, तो तलाक के बाद पति उन गहनों पर दावा नहीं कर सकता।


5. संपत्ति का निपटान कैसे किया जाएगा?

आपसी सहमति से समझौता – यदि पति-पत्नी सहमत हों, तो संपत्ति का विभाजन आपसी सहमति से किया जा सकता है।
अदालत का आदेश – यदि सहमति न बने, तो अदालत संपत्ति को उचित तरीके से बांटने का आदेश दे सकती है।
बेचकर राशि का बंटवारा – यदि संपत्ति बेची जा सकती है, तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि इसे बेचकर दोनों के बीच आय का विभाजन कर दिया जाए।

उदाहरण: यदि तलाक के बाद पति-पत्नी के पास एक फ्लैट है, तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि या तो इसे बेचकर राशि बांटी जाए या किसी एक पक्ष को पूरी रकम देकर संपत्ति दी जाए।


6. धारा 27 के तहत कौन-कौन सी संपत्ति शामिल नहीं होती?

पति या पत्नी द्वारा व्यक्तिगत रूप से अर्जित की गई संपत्ति – यदि कोई संपत्ति विवाह के दौरान पति या पत्नी ने अपनी कमाई से खरीदी है, तो यह धारा लागू नहीं होती।
पति या पत्नी को विरासत में मिली संपत्ति – यदि किसी पक्ष को उसके माता-पिता या पूर्वजों से संपत्ति विरासत में मिली हो, तो इसे इस धारा के तहत विभाजित नहीं किया जा सकता।
तलाक के बाद अर्जित की गई संपत्ति – तलाक के बाद यदि किसी पक्ष ने कोई संपत्ति अर्जित की है, तो यह धारा उस पर लागू नहीं होगी।

उदाहरण: यदि पति ने अपनी नौकरी की कमाई से तलाक के बाद एक नई कार खरीदी, तो पत्नी इस कार पर दावा नहीं कर सकती।


7. धारा 27 और स्त्रीधन (Stridhan) में क्या अंतर है?

आधारधारा 27स्त्रीधन (Stridhan)
परिभाषाविवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति का विभाजनमहिला को मिले व्यक्तिगत उपहार या संपत्ति
किसे मिलता है?पति और पत्नी दोनोंकेवल पत्नी को
कानूनी अधिकारसंपत्ति का बंटवारा अदालत द्वारा तय किया जाता हैपत्नी का पूर्ण स्वामित्व होता है
उदाहरणविवाह के दौरान दोनों को मिली संयुक्त संपत्तिशादी में मिले गहने, उपहार, नकद आदि

8. निष्कर्ष:

धारा 27 यह सुनिश्चित करती है कि तलाक, विवाह रद्दीकरण या न्यायिक पृथक्करण के बाद संपत्ति का उचित और न्यायसंगत विभाजन हो।
✅ यह धारा केवल उस संपत्ति पर लागू होती है, जो विवाह के दौरान पति-पत्नी को मिली थी।
✅ अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि संपत्ति का उचित बंटवारा हो और कोई भी पक्ष अन्याय का शिकार न हो।
✅ यदि पति-पत्नी किसी संपत्ति पर सहमत नहीं होते, तो अदालत इसे बेचकर या अन्य तरीके से विभाजित करने का आदेश दे सकती है।
स्त्रीधन (Stridhan) पर केवल पत्नी का अधिकार होता है, और पति इस पर दावा नहीं कर सकता।

धारा 27 का उद्देश्य यह है कि विवाह के दौरान प्राप्त संपत्ति को उचित तरीके से बांटा जाए, ताकि तलाक के बाद कोई भी पक्ष संपत्ति विवाद में फँसकर अन्याय का शिकार न हो।


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