हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 26: बच्चों की देखरेख, शिक्षा और भरण-पोषण (Custody, Maintenance & Education of Children)
परिचय:
धारा 26 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि तलाक, विवाह रद्दीकरण, या न्यायिक पृथक्करण के बाद बच्चों की देखभाल, शिक्षा और भरण-पोषण का उचित प्रबंध किया जाए।
इसका उद्देश्य यह है कि माता-पिता के बीच कानूनी विवाद का असर बच्चों की परवरिश और भविष्य पर न पड़े।
धारा 26 के प्रमुख प्रावधान:
1. कौन इस धारा के तहत आवेदन कर सकता है?
✅ माता या पिता किसी भी समय अदालत में आवेदन कर सकते हैं और यह अनुरोध कर सकते हैं कि बच्चों की देखरेख (custody), शिक्षा और भरण-पोषण की उचित व्यवस्था की जाए।
✅ यह आवेदन केवल उन्हीं बच्चों के लिए किया जा सकता है जो नाबालिग (18 वर्ष से कम उम्र) हों।
✅ यह प्रावधान तलाक, विवाह रद्दीकरण, या न्यायिक पृथक्करण से संबंधित मामलों में लागू होता है।
उदाहरण: यदि माता-पिता का तलाक हो गया है और माता अपने बच्चों की कस्टडी चाहती है, तो वह अदालत में धारा 26 के तहत याचिका दायर कर सकती है।
2. अदालत किन बातों को ध्यान में रखेगी?
अदालत निम्नलिखित बातों पर विचार करेगी—
✅ बच्चे का सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child)
✅ माता-पिता की आर्थिक स्थिति और जीवनशैली
✅ बच्चे की उम्र, स्वास्थ्य, और उसकी इच्छाएँ (यदि बच्चा समझदार है)
✅ माता-पिता में से कौन बच्चे की अच्छी परवरिश कर सकता है
महत्वपूर्ण: अदालत का मुख्य उद्देश्य बच्चे के भविष्य को सुरक्षित रखना होता है, न कि केवल माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करना।
3. बच्चों की कस्टडी (Custody of Children)
✅ यदि माता-पिता अलग हो जाते हैं, तो अदालत यह तय करेगी कि बच्चे की कस्टडी किसे दी जाए।
✅ अमूमन, छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दी जाती है, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह बच्चे की अच्छी देखभाल नहीं कर सकती।
✅ यदि माता-पिता में से कोई बच्चे के हितों के विरुद्ध कार्य करता है, तो उसकी कस्टडी नहीं दी जाएगी।
उदाहरण: यदि माता शराब की आदी है और बच्चे की देखभाल ठीक से नहीं कर सकती, तो अदालत पिता को कस्टडी देने का आदेश दे सकती है।
4. बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी (Maintenance of Children)
✅ अदालत यह तय करेगी कि बच्चे की परवरिश और खर्च कौन उठाएगा।
✅ जिस माता-पिता को कस्टडी नहीं दी गई है, उसे बच्चे के भरण-पोषण के लिए वित्तीय सहायता (Financial Support) देनी होगी।
✅ यह सहायता बच्चे की शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य आवश्यकताओं के लिए दी जाती है।
उदाहरण: यदि बच्चे की कस्टडी मां को दी गई है और पिता की अच्छी आय है, तो अदालत पिता को आदेश दे सकती है कि वह हर महीने ₹15,000 भरण-पोषण के रूप में मां को दे।
5. बच्चों की शिक्षा और अन्य आवश्यकताएँ (Education and Welfare of Children)
✅ अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चे को उचित शिक्षा मिले और उसका भविष्य सुरक्षित रहे।
✅ यदि माता-पिता में से कोई यह दावा करता है कि वह बच्चे की शिक्षा का खर्च उठा सकता है, तो अदालत इसे ध्यान में रखेगी।
✅ यदि बच्चा स्पेशल केयर (Special Care) या मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत में हो, तो अदालत माता-पिता को इसके लिए आवश्यक आदेश दे सकती है।
उदाहरण: यदि बच्चा किसी विशेष विद्यालय में पढ़ता है और उसकी पढ़ाई का खर्च ₹50,000 प्रति माह है, तो अदालत आदेश दे सकती है कि माता-पिता इसे साझा रूप से वहन करें।
6. भरण-पोषण और कस्टडी आदेश में संशोधन (Modification of Custody & Maintenance Order)
✅ यदि परिस्थितियाँ बदलती हैं, तो माता या पिता अदालत से अनुरोध कर सकते हैं कि भरण-पोषण या कस्टडी के आदेश में बदलाव किया जाए।
✅ यदि माता या पिता की आर्थिक स्थिति बदलती है, या बच्चा किसी अन्य माता-पिता के साथ रहना चाहता है, तो अदालत कस्टडी और भरण-पोषण के आदेश को संशोधित कर सकती है।
उदाहरण: यदि माता को पहले कस्टडी दी गई थी, लेकिन बाद में उसने दूसरी शादी कर ली और बच्चा अब पिता के साथ रहना चाहता है, तो पिता अदालत में याचिका दायर कर सकता है और कस्टडी बदलने की मांग कर सकता है।
7. आदेश की समाप्ति (Termination of Order)
✅ यदि बच्चा 18 वर्ष का हो जाता है, तो भरण-पोषण का आदेश स्वतः समाप्त हो सकता है, जब तक कि अदालत अन्यथा न कहे।
✅ यदि कोई अभिभावक अदालत के आदेश का पालन नहीं करता, तो अदालत उसे दंडित कर सकती है और कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
महत्वपूर्ण: यदि बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है, तो अदालत आदेश दे सकती है कि भरण-पोषण जारी रखा जाए, भले ही बच्चा 18 वर्ष से अधिक का हो।
8. धारा 26 में याचिका दाखिल करने की समय-सीमा
✅ कस्टडी, शिक्षा और भरण-पोषण से संबंधित याचिका किसी भी समय दायर की जा सकती है।
✅ यदि माता-पिता में से कोई पहले से जारी आदेश में बदलाव चाहता है, तो वह भी अदालत में संशोधन याचिका दाखिल कर सकता है।
उदाहरण: यदि माता को पहले भरण-पोषण के रूप में ₹10,000 प्रतिमाह दिया जा रहा था, लेकिन अब शिक्षा और चिकित्सा खर्च बढ़ गए हैं, तो वह अदालत से भरण-पोषण बढ़ाने की मांग कर सकती है।
धारा 24, 25 और 26 में क्या अंतर है?
धारा | क्या प्रावधान है? | किसके लिए लागू होती है? |
---|---|---|
धारा 24 | अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे का खर्च | पति या पत्नी (केवल मुकदमे की अवधि के लिए) |
धारा 25 | स्थायी भरण-पोषण और निर्वाह खर्च | तलाक के बाद पति या पत्नी |
धारा 26 | बच्चों की कस्टडी, शिक्षा और भरण-पोषण | नाबालिग बच्चे (18 वर्ष से कम) |
9. निष्कर्ष:
✅ धारा 26 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि तलाक या अलगाव के बाद बच्चों की देखभाल, शिक्षा और भरण-पोषण की उचित व्यवस्था हो।
✅ अदालत का मुख्य उद्देश्य बच्चों के सर्वोत्तम हित को सुरक्षित रखना होता है।
✅ कस्टडी आमतौर पर मां को दी जाती है, लेकिन यदि मां बच्चे की अच्छी देखभाल नहीं कर सकती, तो कस्टडी पिता को दी जा सकती है।
✅ भरण-पोषण का खर्च माता-पिता की आर्थिक स्थिति और बच्चे की जरूरतों के अनुसार तय किया जाता है।
✅ यदि परिस्थितियाँ बदलती हैं, तो अदालत कस्टडी या भरण-पोषण में बदलाव कर सकती है।
धारा 26 यह सुनिश्चित करती है कि माता-पिता के बीच कानूनी विवाद के कारण बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहे और उसे उचित परवरिश, शिक्षा और आर्थिक सहायता मिलती रहे।
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