हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 24: अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे का खर्चा (Maintenance Pendente Lite and Expenses of Proceedings)
परिचय:
धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि तलाक, न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation), या अन्य विवाह संबंधी मुकदमों के दौरान, आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष को अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) और मुकदमे का खर्चा दिया जाए।
इसका उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति केवल आर्थिक तंगी के कारण न्याय से वंचित न रह जाए।
धारा 24 के प्रमुख प्रावधान:
1. किसे अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे का खर्चा मिल सकता है?
✅ यदि पति या पत्नी में से कोई भी पक्ष वित्तीय रूप से कमजोर है और अपनी आजीविका या मुकदमे का खर्च नहीं उठा सकता, तो वह अदालत से भरण-पोषण और कानूनी खर्च की मांग कर सकता है।
✅ यह भरण-पोषण और मुकदमे का खर्चा दूसरे पक्ष को देना होगा, यदि अदालत यह उचित समझे।
उदाहरण: यदि पत्नी के पास आय का कोई स्रोत नहीं है और वह तलाक का मुकदमा लड़ रही है, तो अदालत पति को आदेश दे सकती है कि वह मुकदमे के दौरान पत्नी को आर्थिक सहायता प्रदान करे।
2. अदालत किन बातों का ध्यान रखेगी?
अदालत यह तय करने के लिए निम्नलिखित बातों पर विचार करेगी—
✅ याचिकाकर्ता की आय और संपत्ति (जिसने भरण-पोषण मांगा है)
✅ उत्तरदाता (Respondent) की आय और संपत्ति (जो भरण-पोषण देगा)
✅ मुकदमे की परिस्थितियाँ और कानूनी खर्च
✅ याचिकाकर्ता की जरूरतें और जीवन-स्तर
उदाहरण: यदि पति एक उच्च आय अर्जित करने वाला व्यक्ति है और पत्नी बेरोजगार है, तो अदालत पत्नी को मुकदमे की अवधि के लिए भरण-पोषण देने का आदेश दे सकती है।
3. अंतरिम भरण-पोषण की राशि (Amount of Interim Maintenance)
✅ अदालत भरण-पोषण की राशि और मुकदमे के खर्चे की सीमा तय करेगी।
✅ यह राशि याचिकाकर्ता की जरूरतों और उत्तरदाता की आय को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है।
✅ अदालत इस राशि का भुगतान महीने के आधार पर करने का आदेश दे सकती है।
उदाहरण: अदालत आदेश दे सकती है कि पति हर महीने 10,000 रुपये पत्नी को दे, जब तक कि मुकदमे का अंतिम फैसला न हो जाए।
4. भरण-पोषण की अवधि (Duration of Maintenance)
✅ यह भरण-पोषण केवल मुकदमे की कार्यवाही पूरी होने तक दिया जाता है।
✅ मुकदमे का अंतिम निर्णय होने के बाद, यदि आवश्यक हो, तो पति/पत्नी स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) की मांग कर सकते हैं।
महत्वपूर्ण: धारा 24 का भरण-पोषण स्थायी नहीं होता, बल्कि केवल मुकदमे के दौरान दिया जाता है।
5. यदि भरण-पोषण देने वाला पक्ष आदेश का पालन न करे तो क्या होगा?
✅ यदि कोई व्यक्ति अदालत के आदेश के बावजूद भरण-पोषण और मुकदमे का खर्च नहीं देता, तो अदालत उसे कानूनी रूप से बाध्य कर सकती है।
✅ इसमें संपत्ति कुर्क (Attachment of Property), वेतन से कटौती (Salary Deduction), या दंड (Penalty) जैसी कार्रवाई हो सकती है।
उदाहरण: यदि अदालत ने आदेश दिया है कि पति पत्नी को हर महीने 15,000 रुपये दे, लेकिन वह भुगतान नहीं करता, तो पत्नी अदालत में शिकायत कर सकती है और पति की संपत्ति या वेतन से पैसा वसूल किया जा सकता है।
6. धारा 24 केवल अंतरिम राहत के लिए है
✅ यह प्रावधान केवल मुकदमे के दौरान की आर्थिक सहायता के लिए है, स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) के लिए नहीं।
✅ मुकदमे के बाद, यदि कोई पक्ष स्थायी भरण-पोषण चाहता है, तो वह धारा 25 के तहत याचिका दायर कर सकता है।
7. निष्कर्ष:
✅ धारा 24 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक रूप से कमजोर पति या पत्नी न्याय से वंचित न हो।
✅ यदि कोई पक्ष मुकदमे का खर्च उठाने में असमर्थ है, तो अदालत दूसरे पक्ष को आदेश दे सकती है कि वह उसे आर्थिक सहायता प्रदान करे।
✅ अदालत दोनों पक्षों की आय, संपत्ति और जीवन-स्तर को ध्यान में रखकर भरण-पोषण की राशि तय करेगी।
✅ यदि कोई व्यक्ति अदालत के आदेश का पालन नहीं करता, तो अदालत उसे कानूनी रूप से बाध्य कर सकती है।
यह धारा विवाह के कानूनी मुकदमों में आर्थिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है और सुनिश्चित करती है कि न्याय केवल अमीरों तक सीमित न रहे।
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