हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 20: याचिका में तथ्यों की सत्यता (Statements in Petitions to be Verified)
परिचय:
धारा 20 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इस अधिनियम के तहत दायर की गई याचिकाओं (Petitions) में दिए गए सभी तथ्य सत्य और प्रमाणित होने चाहिए।
इसका मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यता बनाए रखना है ताकि झूठे या ग़लत दावों के आधार पर किसी को नुकसान न पहुंचे।
धारा 20 के प्रमुख प्रावधान:
1. याचिका में तथ्यों का सत्यापन आवश्यक (Verification of Facts in Petitions)
✅ हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी भी याचिका में दिए गए सभी तथ्यों को याचिकाकर्ता (Petitioner) को सत्यापित करना अनिवार्य है।
✅ सत्यापन शपथ पत्र (Affidavit) या अन्य कानूनी तरीके से किया जाना चाहिए।
उदाहरण: यदि कोई महिला अपने पति के खिलाफ तलाक की याचिका दायर करती है, तो उसे यह प्रमाणित करना होगा कि उसकी याचिका में लिखे गए तथ्य सत्य और सही हैं।
2. सत्यापन की विधि (Mode of Verification)
✅ याचिकाकर्ता को अदालत के समक्ष एक शपथ पत्र (Affidavit) देना होगा, जिसमें यह घोषित किया जाएगा कि याचिका में दर्ज सभी तथ्य सत्य और विश्वसनीय हैं।
✅ यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत जानकारी देता है, तो यह न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) या अन्य दंडनीय अपराध हो सकता है।
उदाहरण: यदि कोई पति यह दावा करता है कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ, तो अदालत इस झूठे बयान के लिए उसे दंडित कर सकती है।
3. झूठी याचिकाओं पर सजा (Penalty for False Petitions)
✅ यदि कोई व्यक्ति झूठे तथ्यों के आधार पर याचिका दायर करता है और इसका सत्यापन गलत होता है, तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 और 195 के तहत झूठी गवाही का मामला दर्ज किया जा सकता है।
✅ इसमें जुर्माना और कारावास दोनों की सजा हो सकती है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति झूठे सबूतों के आधार पर विवाह को अमान्य घोषित कराने की कोशिश करता है और यह साबित हो जाता है कि उसने झूठी जानकारी दी है, तो उसे सजा हो सकती है।
4. धारा 20 का उद्देश्य
✅ न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना।
✅ झूठे और मनगढ़ंत मुकदमों को रोकना।
✅ विवाह संबंधी विवादों में सत्यता की जांच सुनिश्चित करना।
✅ झूठे आरोपों से निर्दोष व्यक्ति को बचाना।
5. निष्कर्ष:
धारा 20 यह सुनिश्चित करती है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कोई भी याचिका सत्य और प्रमाणित तथ्यों पर आधारित हो।
यदि कोई व्यक्ति झूठी जानकारी के आधार पर याचिका दायर करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
इससे न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता बनी रहती है और गलत मुकदमों को रोका जा सकता है।
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