हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 19: क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) का प्रावधान
परिचय:
धारा 19 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि हिंदू विवाह से संबंधित मुकदमे (Cases) किस अदालत (Court) में दायर किए जा सकते हैं।
इस धारा के तहत, विवाह से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए न्यायालय का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) तय किया जाता है।
धारा 19 के प्रमुख प्रावधान:
1. विवाह से संबंधित मामलों के लिए उपयुक्त अदालत (Appropriate Court for Filing Cases)
कोई भी हिंदू विवाह से संबंधित याचिका (Petition), जैसे तलाक (Divorce), विवाह की शून्यता (Nullity of Marriage), विवाह रद्दीकरण (Annulment) या कानूनी पृथक्करण (Judicial Separation), निम्नलिखित स्थानों की अदालत में दायर की जा सकती है:
(A) जहां विवाह संपन्न हुआ हो (Where the Marriage was Solemnized)
✅ यदि पति-पत्नी का विवाह किसी विशेष स्थान पर हुआ था, तो वे उसी क्षेत्र की अदालत में मुकदमा दायर कर सकते हैं।
उदाहरण: यदि विवाह दिल्ली में हुआ, तो दिल्ली की संबंधित अदालत में मामला दायर किया जा सकता है।
(B) जहां पति या पत्नी में से कोई एक निवास करता हो (Where Either Spouse Resides)
✅ पति या पत्नी जहां नियमित रूप से रहते हैं (Permanent or Ordinary Residence), वहां की अदालत में मामला दायर किया जा सकता है।
उदाहरण: यदि पति मुंबई में रहता है और पत्नी कोलकाता में, तो वे मुंबई या कोलकाता की अदालत में मामला दर्ज करा सकते हैं।
(C) जहां पति-पत्नी अंतिम बार एक साथ रहे (Where They Last Resided Together)
✅ यदि पति और पत्नी किसी स्थान पर अंतिम बार एक साथ रहे, तो उसी क्षेत्र की अदालत में मामला दर्ज किया जा सकता है।
उदाहरण: यदि पति-पत्नी शादी के बाद कुछ साल लखनऊ में साथ रहे और बाद में अलग हो गए, तो लखनऊ की अदालत में मामला दायर किया जा सकता है।
(D) यदि पत्नी न्यायालय में याचिका दायर कर रही हो (Where the Wife is Residing at the Time of Filing the Petition)
✅ यदि पत्नी तलाक, विवाह रद्द करने या अन्य मामलों के लिए याचिका दायर कर रही है, तो वह अपने वर्तमान निवास स्थान की अदालत में मामला दर्ज कर सकती है।
उदाहरण: यदि पत्नी अपने मायके जयपुर में रह रही है, तो वह जयपुर की अदालत में केस दायर कर सकती है, भले ही पति किसी और शहर में रह रहा हो।
(E) यदि पति-पत्नी में से कोई भी भारत का नागरिक नहीं है (Where the Respondent Resides in India, but the Marriage was Conducted Abroad)
✅ यदि पति-पत्नी में से कोई भारत का निवासी नहीं है, लेकिन विवाह भारत में हुआ था, तो मामला भारत में दायर किया जा सकता है।
उदाहरण: यदि एक भारतीय नागरिक ने विदेश में विवाह किया और बाद में विवाद हुआ, तो वह भारत में संबंधित अदालत में मुकदमा दायर कर सकता है।
2. धारा 19 का उद्देश्य
✅ यह सुनिश्चित करना कि विवाह से जुड़े मामले उचित क्षेत्राधिकार वाली अदालत में दायर हों।
✅ पति-पत्नी दोनों के लिए सुविधाजनक स्थान पर मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार देना।
✅ विवाह से जुड़े मामलों के न्यायिक निपटारे (Judicial Resolution) की प्रक्रिया को सुगम बनाना।
3. निष्कर्ष:
धारा 19 यह निर्धारित करती है कि हिंदू विवाह से जुड़े विवादों के लिए कौन-सी अदालत के पास अधिकार क्षेत्र होगा।
मुकदमा निम्नलिखित स्थानों पर दायर किया जा सकता है:
1️⃣ जहां विवाह संपन्न हुआ था,
2️⃣ जहां पति या पत्नी में से कोई एक रहता हो,
3️⃣ जहां वे अंतिम बार साथ रहे थे,
4️⃣ जहां पत्नी वर्तमान में रह रही हो,
5️⃣ यदि विवाह विदेश में हुआ हो, तो जहां संबंधित पक्ष भारत में निवास करता हो।
इस धारा का उद्देश्य मुकदमों की प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी बनाना है, ताकि पीड़ित पक्ष को न्याय आसानी से मिल सके।
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