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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 17 – द्विविवाह (Bigamy) और इसकी कानूनी सजा

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 17: द्विविवाह (Bigamy) और इसकी कानूनी सजा

परिचय:

धारा 17 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो द्विविवाह (Bigamy) यानी एक व्यक्ति का पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी करने से संबंधित है।
यह धारा यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई हिंदू व्यक्ति अपनी पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह अवैध (Illegal) होगा और इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दंडनीय अपराध माना जाएगा।


धारा 17 के प्रमुख प्रावधान:

1. द्विविवाह का निषेध (Prohibition of Bigamy)

  • यदि कोई हिंदू पुरुष या महिला अपने जीवनसाथी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करता है, तो यह विवाह अवैध (Void) होगा।
  • पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त (Divorce) हुए बिना दूसरी शादी करना अपराध है।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने अपनी पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी की, तो दूसरी शादी अवैध मानी जाएगी, और उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।


2. भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत सजा

  • IPC की धारा 494:
    • यदि कोई व्यक्ति पहले विवाह के रहते हुए दूसरा विवाह करता है, तो उसे 7 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • IPC की धारा 495:
    • यदि कोई व्यक्ति अपनी पहली शादी की जानकारी छिपाकर दूसरा विवाह करता है, तो उसे 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति पहली शादी को छिपाकर दूसरी शादी करता है, तो यह अधिक गंभीर अपराध माना जाएगा और उसे कठोर सजा मिल सकती है।


3. किन मामलों में द्विविवाह मान्य होगा?

✅ यदि पहली पत्नी/पति की मृत्यु हो चुकी हो, तो दूसरा विवाह मान्य होगा।
✅ यदि पति-पत्नी का कानूनी रूप से तलाक हो चुका हो, तो दूसरा विवाह वैध होगा।
✅ यदि पहली शादी को अदालत ने अमान्य (Void) घोषित कर दिया हो, तो दूसरा विवाह किया जा सकता है।


4. धारा 17 का उद्देश्य

  • हिंदू विवाह की एकपत्नीवाद (Monogamy) परंपरा को बनाए रखना।
  • अवैध विवाह को रोकना और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना।
  • द्विविवाह के कारण उत्पन्न संपत्ति विवादों और पारिवारिक संघर्षों को कम करना।
  • महिलाओं और बच्चों को कानूनी संरक्षण प्रदान करना।

5. महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले:

  • सारला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995):
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई हिंदू व्यक्ति अपनी पहली शादी के रहते हुए इस्लाम धर्म अपनाकर दूसरी शादी करता है, तो यह द्विविवाह (Bigamy) होगा और दंडनीय अपराध माना जाएगा।
  • लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2000):
    सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा स्पष्ट किया कि धर्म बदलकर दूसरी शादी करना भी गैरकानूनी होगा, यदि पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई है।

6. निष्कर्ष:

धारा 17 यह सुनिश्चित करती है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति को पहली शादी समाप्त किए बिना दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं है।
यदि कोई ऐसा करता है, तो यह न केवल अवैध होगा बल्कि उसे IPC की धारा 494 और 495 के तहत कठोर सजा भी मिल सकती है।
इस प्रावधान से हिंदू समाज में वैवाहिक व्यवस्था की पवित्रता बनी रहती है और महिलाओं तथा बच्चों के अधिकारों की रक्षा होती है।


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