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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 16 – संतान की वैधता (Legitimacy of Children)

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 16: संतान की वैधता (Legitimacy of Children)

परिचय:

धारा 16 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो अवैध (Void) या रद्द (Voidable) विवाह से उत्पन्न संतान की वैधता को लेकर कानून स्पष्ट करता है।
इस धारा के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि माता-पिता का विवाह अमान्य (Invalid) घोषित कर दिया जाए, तब भी उनकी संतान को अवैध नहीं माना जाएगा।


धारा 16 के प्रमुख प्रावधान:

1. यदि विवाह शून्य (Void) हो, तब भी संतान वैध होगी

  • यदि कोई विवाह धारा 11 के तहत शून्य (Void Marriage) घोषित किया जाता है, तो ऐसे विवाह से जन्मी संतान वैध मानी जाएगी।
  • शून्य विवाह का अर्थ है कि विवाह कानूनन मान्य नहीं था, जैसे:
    ✅ पहला विवाह समाप्त किए बिना दूसरा विवाह करना (Bigamy)।
    ✅ अवयस्क विवाह (जब दोनों पक्ष विवाह योग्य उम्र में न हों)।
    ✅ निकट संबंधी (Sapinda) में विवाह।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने दूसरा विवाह किया, और बाद में अदालत ने इसे अवैध घोषित कर दिया, तो भी उस विवाह से जन्मे बच्चे को वैध संतान माना जाएगा।


2. यदि विवाह रद्द (Voidable) किया जाए, तब भी संतान वैध होगी

  • यदि कोई विवाह धारा 12 के तहत रद्द (Voidable) कर दिया जाए, तो उस विवाह से जन्मी संतान को वैध माना जाएगा।
  • रद्द किया गया विवाह वह होता है जिसे अदालत द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है, लेकिन जब तक अदालत इसे रद्द न करे, यह वैध माना जाता है।

उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने धोखे से शादी की और बाद में पत्नी ने विवाह को अदालत में चुनौती देकर रद्द (Annul) करा लिया, तो भी उनके बच्चे वैध माने जाएंगे।


3. संपत्ति के अधिकार (Property Rights) पर प्रतिबंध

  • धारा 16(3) के अनुसार, अवैध विवाह से जन्मी संतान केवल अपने माता-पिता की संपत्ति में ही अधिकार रखेगी, अन्य रिश्तेदारों की संपत्ति में नहीं।
  • संतान को वंशानुगत संपत्ति (Ancestral Property) में हिस्सा नहीं मिलेगा, बल्कि केवल माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति में अधिकार होगा।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति दूसरा विवाह करता है और उसका विवाह अवैध घोषित हो जाता है, तो उस विवाह से जन्मे बच्चे को अपने पिता की संपत्ति में अधिकार मिलेगा, लेकिन पिता के भाइयों या अन्य रिश्तेदारों की संपत्ति में कोई दावा नहीं होगा।


4. धारा 16 का उद्देश्य

बच्चों को कानूनी संरक्षण देना: यदि माता-पिता का विवाह कानूनी रूप से अवैध घोषित होता है, तो बच्चे को अवैध (Illegitimate) मानकर उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाना: यह धारा सुनिश्चित करती है कि बच्चे को शिक्षा, संपत्ति और अन्य अधिकार मिलें।
संपत्ति विवादों को हल करना: यह स्पष्ट करता है कि ऐसे बच्चे केवल माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे, न कि अन्य पारिवारिक संपत्तियों के।


5. निष्कर्ष:

धारा 16 यह सुनिश्चित करती है कि अवैध (Void) या रद्द (Voidable) विवाह से जन्मी संतान को समाज में समान अधिकार मिले।
हालांकि, ऐसे बच्चों को सिर्फ माता-पिता की संपत्ति में अधिकार दिया गया है, परिवार के अन्य सदस्यों की संपत्ति में नहीं।
इस प्रावधान से बच्चों के कानूनी अधिकार सुरक्षित होते हैं और वे अपने माता-पिता की संतान के रूप में पूरी तरह वैध माने जाते हैं।


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