हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 14: तलाक की याचिका कब दायर की जा सकती है?
परिचय:
धारा 14 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में इस बात से संबंधित है कि कोई भी पति या पत्नी विवाह के बाद कितनी जल्दी तलाक की याचिका (Divorce Petition) दायर कर सकता है।
इस धारा के तहत, विवाह के एक साल के भीतर तलाक की याचिका दायर करना प्रतिबंधित किया गया है, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।
धारा 14 के प्रमुख प्रावधान:
1. विवाह के 1 वर्ष के भीतर तलाक की याचिका पर रोक
- कोई भी पति या पत्नी विवाह के एक साल के भीतर तलाक की याचिका दायर नहीं कर सकता।
- यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि पति-पत्नी को अपने मतभेद सुलझाने का पर्याप्त समय मिल सके और विवाह को बचाया जा सके।
2. अपवाद (Exception): विशेष परिस्थितियों में तलाक की अनुमति
हालांकि, कुछ असाधारण मामलों में, यदि यह सिद्ध हो जाए कि:
- पति या पत्नी को अत्यधिक कठिनाइयों (Extreme Hardship) का सामना करना पड़ रहा है।
- पति या पत्नी को विवाह में अमानवीय या असहनीय क्रूरता (Exceptional Hardship or Cruelty) झेलनी पड़ रही है।
तो, अदालत विशेष अनुमति देकर एक साल से पहले भी तलाक की याचिका स्वीकार कर सकती है।
3. यदि अदालत तलाक की याचिका खारिज कर दे तो क्या होगा?
- यदि कोई व्यक्ति विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर विवाह के 1 वर्ष के भीतर तलाक की अर्जी लगाता है, और अदालत इसे अस्वीकार कर देती है,
तो वह व्यक्ति विवाह के 1 वर्ष पूरा होने के बाद दोबारा याचिका दायर कर सकता है। - अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह नियम तलाक की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए बना है।
4. धारा 14 लागू करने का उद्देश्य
- शादी को हल्के में समाप्त करने से रोकना।
- पति-पत्नी को विवाह को बचाने और अपने मतभेद सुलझाने का अवसर देना।
- तलाक की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकना ताकि लोग जल्दबाजी में शादी न तोड़ें।
5. निष्कर्ष:
धारा 14 यह सुनिश्चित करती है कि पति-पत्नी जल्दबाजी में तलाक न लें और अपने रिश्ते को सुधारने की कोशिश करें।
हालांकि, यदि विवाह में अत्यधिक कठिनाई या क्रूरता हो, तो अदालत विशेष अनुमति देकर 1 साल से पहले भी तलाक की याचिका स्वीकार कर सकती है।
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