हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 12: शून्यकरणीय (निरस्त करने योग्य) विवाह (Voidable Marriages)
भूमिका:
धारा 12 (Section 12) हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में “शून्यकरणीय विवाह” (Voidable Marriage) से संबंधित है।
इस धारा के तहत कुछ परिस्थितियों में विवाह अस्थायी रूप से वैध रहता है, लेकिन यदि प्रभावित पक्ष (पति या पत्नी) अदालत में याचिका दायर करता है, तो उसे निरस्त (Annul) किया जा सकता है।
इसका अर्थ यह है कि जब तक इसे अदालत द्वारा अवैध घोषित नहीं किया जाता, तब तक यह विवाह वैध माना जाता है।
धारा 12 के प्रमुख प्रावधान:
शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage) क्या होता है?
- ऐसा विवाह जो कानूनी रूप से वैध तो होता है, लेकिन यदि पीड़ित पक्ष अदालत में याचिका दायर करता है और अदालत इसे अवैध मान लेती है, तो विवाह को समाप्त किया जा सकता है।
- यदि पीड़ित पक्ष याचिका दायर नहीं करता, तो विवाह मान्य बना रहता है।
विवाह को शून्यकरणीय (निरस्त) करने के आधार:
धारा 12 के तहत विवाह को निम्नलिखित कारणों से रद्द किया जा सकता है:
- असम्मति (Absence of Consent) या जबरदस्ती (Force):
- यदि विवाह किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती (Force) या दबाव डालकर संपन्न कराया गया हो।
- यदि विवाह के समय व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक न हो, जिससे वह अपनी सहमति देने में अक्षम हो।
- धोखाधड़ी (Fraud) का आधार:
- यदि विवाह किसी छल या धोखाधड़ी से कराया गया हो, और यदि वह धोखा शादी के मूलभूत पहलुओं से संबंधित हो।
- उदाहरण:
- यदि किसी व्यक्ति ने अपनी पहली शादी की सच्चाई छिपाई हो।
- यदि किसी गंभीर बीमारी या मानसिक विकार को छिपाकर शादी कर ली हो।
- यदि किसी ने अपनी पहचान, धर्म या सामाजिक स्थिति को लेकर धोखा दिया हो।
- पति या पत्नी की शारीरिक अक्षमता (Impotency):
- यदि विवाह के बाद यह सिद्ध हो जाए कि पति या पत्नी में से कोई एक संभोग करने में असमर्थ (Impotent) है और यह विवाह के समय से ही ऐसा था, तो विवाह को शून्यकरणीय घोषित किया जा सकता है।
- गर्भावस्था से जुड़ा धोखा (Pregnancy by Another Person):
- यदि विवाह के समय पत्नी पहले से ही किसी अन्य पुरुष के गर्भ से थी और पति को इस बारे में जानकारी नहीं थी, तो पति विवाह को निरस्त करने के लिए अदालत में याचिका दायर कर सकता है।
विवाह को रद्द करने के लिए याचिका दायर करने की शर्तें:
- प्रभावित व्यक्ति को विवाह के बाद 1 साल के भीतर याचिका दायर करनी होगी।
- यदि पीड़ित व्यक्ति विवाह के बाद विवाह को स्वीकार कर लेता है या पति-पत्नी के रूप में सहवास करता है, तो याचिका दायर करने का अधिकार समाप्त हो जाता है।
धारा 12 और धारा 11 में अंतर:
आधार | धारा 11 (शून्य विवाह) | धारा 12 (शून्यकरणीय विवाह) |
---|---|---|
वैधता | शुरू से ही अवैध (Illegal) | पहले वैध, लेकिन बाद में अवैध घोषित किया जा सकता है |
कारण | द्विविवाह, निषिद्ध संबंध, सपिंड संबंध | जबरदस्ती, धोखा, शारीरिक अक्षमता, गर्भावस्था |
कानूनी स्थिति | विवाह कभी अस्तित्व में नहीं होता | विवाह तब तक वैध रहता है जब तक इसे रद्द नहीं किया जाता |
न्यायालय में प्रक्रिया | स्वतः ही अमान्य माना जाता है | पीड़ित पक्ष को याचिका दायर करनी पड़ती है |
न्यायालय में विवाह को निरस्त करने की प्रक्रिया:
- पीड़ित पक्ष को फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करनी होगी।
- विवाह को निरस्त करने के लिए ठोस प्रमाण देने होंगे।
- यदि अदालत को याचिका उचित लगती है, तो वह विवाह को शून्यकरणीय घोषित कर सकती है।
धारा 12 का उद्देश्य:
- विवाह संस्था की पवित्रता और न्याय सुनिश्चित करना।
- यदि विवाह किसी धोखाधड़ी, जबरदस्ती या अक्षमता के आधार पर हुआ हो, तो पीड़ित को राहत देना।
- प्रभावित व्यक्ति को यह विकल्प देना कि वह विवाह को जारी रखना चाहता है या समाप्त करना चाहता है।
निष्कर्ष:
धारा 12 हिंदू विवाह अधिनियम में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो विवाह को शून्यकरणीय (Voidable) घोषित करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
इस धारा के तहत विवाह शुरू में वैध होता है, लेकिन यदि यह धोखाधड़ी, जबरदस्ती, मानसिक अस्थिरता या शारीरिक अक्षमता के आधार पर हुआ हो, तो प्रभावित पक्ष अदालत में याचिका दायर कर इसे निरस्त करवा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति विवाह के बाद इसे स्वीकार कर लेता है, तो वह बाद में इसे निरस्त करवाने का दावा नहीं कर सकता।
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