हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 11: शून्य (अमान्य) विवाह (Void Marriages)
भूमिका:
धारा 11 (Section 11) हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में “शून्य विवाह” (Void Marriage) से संबंधित है।
इस धारा के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में विवाह को अवैध (Illegal) और शून्य (Null and Void) घोषित किया जाता है।
इसका अर्थ यह है कि ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जाती और इसे अस्तित्वहीन माना जाता है।
धारा 11 के प्रमुख प्रावधान:
यदि कोई विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के किसी भी अनिवार्य नियम का उल्लंघन करता है, तो वह विवाह धारा 11 के तहत शून्य (Void) होगा।
ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं:
- बिगेमी (Bigamy) या द्विविवाह:
- यदि किसी व्यक्ति का विवाह पहले से ही वैध रूप से किसी अन्य व्यक्ति से हुआ है और वह अपने जीवनसाथी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह विवाह अवैध होगा।
- यह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(1) का उल्लंघन करता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 और 495 के तहत इसे अपराध भी माना जाता है।
- निषिद्ध संबंध (Prohibited Relationship) में विवाह:
- यदि कोई विवाह उन लोगों के बीच संपन्न हुआ है जो आपस में निषिद्ध संबंध (Prohibited Relationship) में आते हैं, तो वह विवाह शून्य होगा।
- यह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(4) का उल्लंघन करता है।
- निषिद्ध संबंध वे होते हैं जिनमें विवाह करना सामाजिक और कानूनी रूप से मान्य नहीं होता, जैसे—
- भाई-बहन का विवाह
- चाचा-भतीजी या मामा-भांजी का विवाह
- बुआ-भतीजा या फूफा-भांजी का विवाह
- माता-पिता और संतान के बीच विवाह
- सपिंड संबंध (Sapinda Relationship) में विवाह:
- यदि कोई विवाह दो व्यक्तियों के बीच हुआ है जो सपिंड संबंध (Sapinda Relationship) में आते हैं, तो वह शून्य होगा।
- यह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(5) का उल्लंघन करता है।
- “सपिंड” का अर्थ है रक्त संबंधी (Blood Relatives), अर्थात् वे लोग जिनका पांचवी पीढ़ी (पिता की ओर) और तीसरी पीढ़ी (माता की ओर) तक सीधा संबंध हो।
धारा 11 के अनुसार विवाह शून्य घोषित करने की प्रक्रिया:
- पति या पत्नी में से कोई भी संबंधित पारिवारिक न्यायालय (Family Court) में याचिका दायर कर सकता है।
- यदि अदालत को यह प्रमाणित हो जाता है कि विवाह धारा 5 के उल्लंघन में हुआ है, तो वह विवाह को शून्य घोषित कर सकती है।
- शून्य विवाह को शुरू से ही अवैध माना जाता है, यानी ऐसे विवाह से उत्पन्न वैवाहिक अधिकार या दायित्व नहीं होते।
धारा 11 और धारा 12 में अंतर (Void vs. Voidable Marriage):
आधार | धारा 11 (शून्य विवाह) | धारा 12 (निरस्त विवाह) |
---|---|---|
वैधता | शुरू से ही अमान्य | प्रारंभ में वैध, लेकिन बाद में अमान्य घोषित किया जा सकता है |
कारण | द्विविवाह, निषिद्ध संबंध, सपिंड संबंध | जबरदस्ती, धोखाधड़ी, मानसिक अस्थिरता आदि |
कानूनी स्थिति | विवाह कभी अस्तित्व में नहीं होता | विवाह तब तक वैध होता है जब तक उसे रद्द नहीं किया जाता |
अदालत में प्रक्रिया | कोर्ट स्वतः इसे अवैध मान सकती है | पीड़ित पक्ष को विवाह रद्द करने के लिए याचिका दायर करनी पड़ती है |
धारा 11 का उद्देश्य:
- यह सुनिश्चित करना कि विवाह वैध और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नियमों के अनुसार हो।
- बिगेमी, निषिद्ध संबंध, और सपिंड संबंधों को रोकना।
- परिवार और समाज में विवाह की पवित्रता बनाए रखना।
निष्कर्ष:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 स्पष्ट रूप से उन विवाहों को शून्य (अमान्य) घोषित करती है, जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के महत्वपूर्ण नियमों का उल्लंघन करते हैं।
इसका अर्थ यह है कि ऐसे विवाह कभी कानूनी रूप से अस्तित्व में नहीं होते, और इनके तहत पति-पत्नी को कोई वैवाहिक अधिकार नहीं मिलता।
यदि कोई व्यक्ति ऐसे विवाह में प्रवेश करता है, तो दूसरा पक्ष अदालत में याचिका दायर कर इसे शून्य घोषित करवा सकता है।
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