भूमिका
भारत में विवाह धार्मिक और कानूनी दोनों आधारों पर संपन्न होते हैं। यदि कोई व्यक्ति धार्मिक रीति-रिवाजों के बजाय अंतरधार्मिक विवाह या सिविल विवाह करना चाहता है, तो उसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) के तहत विवाह पंजीकृत करना पड़ता है। इसी अधिनियम के तहत तलाक की प्रक्रिया भी लागू होती है।
यह अधिनियम हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी या किसी भी धर्म के लोगों को बिना धार्मिक रस्मों के विवाह करने की अनुमति देता है। यदि ऐसा विवाह सफल नहीं रहता, तो पति या पत्नी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27 के तहत तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं।
इस लेख में हम विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत तलाक की प्रक्रिया, आधार, और कानूनी अधिकारों की पूरी जानकारी देंगे।
1. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत तलाक के प्रकार
इस अधिनियम के तहत तलाक दो प्रकार से लिया जा सकता है:
- आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) – धारा 28
- एकतरफा तलाक (Contested Divorce) – धारा 27
A. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) – धारा 28
जब पति-पत्नी दोनों इस बात पर सहमत होते हैं कि वे अब एक साथ नहीं रह सकते, तो वे धारा 28 के तहत तलाक की याचिका दाखिल कर सकते हैं।
शर्तें:
- पति-पत्नी को कम से कम 1 साल तक अलग रहना चाहिए।
- दोनों को यह स्वीकार करना होगा कि वे आगे साथ नहीं रह सकते।
- तलाक के लिए दोनों की सहमति आवश्यक है।
प्रक्रिया:
- संयुक्त याचिका दाखिल करें – दोनों पक्ष मिलकर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी देते हैं।
- पहली सुनवाई (First Motion) – कोर्ट याचिका स्वीकार करता है और दोनों पक्षों को 6 महीने का समय देता है।
- छह महीने की प्रतीक्षा अवधि (Cooling-off Period) – कोर्ट पुनर्विचार के लिए समय देता है।
- दूसरी सुनवाई (Second Motion) – यदि 6 महीने बाद भी दोनों तलाक चाहते हैं, तो कोर्ट तलाक की डिक्री जारी करता है।
नोट: यदि दोनों पक्ष सहमत हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि को कम किया जा सकता है।
B. एकतरफा तलाक (Contested Divorce) – धारा 27
यदि केवल एक पक्ष तलाक चाहता है और दूसरा पक्ष सहमत नहीं है, तो इसे एकतरफा तलाक (Contested Divorce) कहा जाता है।
तलाक के कानूनी आधार – धारा 27:
- व्यभिचार (Adultery) – यदि पति या पत्नी विवाह के दौरान किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध रखता है।
- क्रूरता (Cruelty) – यदि कोई पति या पत्नी शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक रूप से यातना देता है।
- त्याग (Desertion) – यदि पति या पत्नी बिना किसी कारण के 2 साल या उससे अधिक समय तक छोड़कर चला गया हो।
- धर्म परिवर्तन (Conversion of Religion) – यदि पति या पत्नी ने विशेष विवाह अधिनियम को छोड़कर कोई अन्य धर्म अपना लिया हो।
- मानसिक विकार (Mental Disorder) – यदि पति या पत्नी गंभीर मानसिक रोग से पीड़ित है।
- नपुंसकता (Impotency) – यदि पति या पत्नी विवाह के बाद भी शारीरिक संबंध बनाने में असमर्थ हो।
- संक्रामक बीमारी (Incurable Disease) – यदि किसी को कुष्ठ रोग, एड्स जैसी संक्रामक बीमारी हो।
- 7 साल से अधिक समय तक लापता (Presumption of Death) – यदि कोई व्यक्ति 7 साल या उससे अधिक समय से लापता है, तो उसे मृत मानकर तलाक लिया जा सकता है।
प्रक्रिया:
- तलाक की याचिका दायर करें – फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर करें।
- कोर्ट नोटिस जारी करता है – दूसरा पक्ष जवाब देने के लिए बुलाया जाता है।
- सुनवाई (Hearing) – दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाती हैं।
- समझौता (Mediation) – कोर्ट पहले कोशिश करता है कि पति-पत्नी सुलह कर लें।
- अंतिम निर्णय (Final Decree) – यदि सुलह नहीं होती, तो कोर्ट तलाक की डिक्री जारी करता है।
2. तलाक के बाद कानूनी अधिकार
गुजारा भत्ता (Alimony/Maintenance) – धारा 36 और 37
- पत्नी को पति से भरण-पोषण (Alimony/Maintenance) का अधिकार है।
- यदि पति आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है, तो उसे भरण-पोषण नहीं देना होगा।
- यदि पत्नी स्वयं सक्षम है, तो उसे भरण-पोषण नहीं मिलेगा।
बच्चों की कस्टडी (Child Custody) – धारा 38
- कोर्ट बच्चे के सर्वोत्तम हित को देखते हुए कस्टडी का निर्णय लेता है।
- बच्चों की शिक्षा, परवरिश और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
संपत्ति का विभाजन
- विशेष विवाह अधिनियम में संपत्ति के विभाजन का कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
- यदि पति-पत्नी में संपत्ति साझा है, तो वे आपसी सहमति से इसका बंटवारा कर सकते हैं।
3. विशेष विवाह अधिनियम के तहत तलाक से जुड़े महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु
- आपसी सहमति से तलाक में 1 साल का अलगाव आवश्यक है।
- यदि पति व्यभिचारी है, तो पत्नी एकतरफा तलाक ले सकती है।
- यदि पत्नी के पास उचित कारण नहीं है, तो पति आसानी से तलाक नहीं ले सकता।
- गुजारा भत्ता केवल तभी दिया जाता है जब पत्नी आर्थिक रूप से निर्भर हो।
- तलाक की प्रक्रिया हिंदू और मुस्लिम कानूनों की तुलना में अधिक संरचित और कानूनी रूप से जटिल हो सकती है।
4. सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले
- 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को कम किया जा सकता है।
- यदि पति-पत्नी में सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो कोर्ट इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा कर सकता है।
निष्कर्ष
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत तलाक की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से परिभाषित है। आपसी सहमति से तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान होता है, जबकि एकतरफा तलाक में कानूनी प्रक्रिया अधिक लंबी और जटिल होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष विवाह अधिनियम के तहत तलाक लेना चाहता है, तो उसे अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
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