भूमिका
इस्लामिक कानून में विवाह (निकाह) एक अनुबंध (Contract) माना जाता है, जिसे कुछ परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है। मुस्लिम कानून में तलाक की प्रक्रिया हिंदू विवाह अधिनियम से अलग होती है और इसमें पति और पत्नी दोनों के लिए विभिन्न तरीके निर्धारित किए गए हैं। यह तलाक शरीयत कानून, द मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 और कुछ कानूनी संशोधनों पर आधारित होता है।
इस लेख में हम विस्तार से मुस्लिम कानून में तलाक के प्रकार, प्रक्रिया और कानूनी प्रावधानों को समझेंगे।
1. मुस्लिम कानून में तलाक के प्रकार
मुस्लिम कानून में तलाक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:
- पति के द्वारा दिया गया तलाक (Talaq by Husband)
- पत्नी के द्वारा लिया गया तलाक (Talaq by Wife)
A. पति द्वारा तलाक (Talaq by Husband)
मुस्लिम पुरुष को तलाक देने के लिए विभिन्न विकल्प दिए गए हैं:
1. तलाक-ए-अहसन (Talaq-e-Ahsan)
- यह सबसे अच्छा और इस्लामिक रूप से मान्य तलाक माना जाता है।
- पति एक बार “तलाक” कहता है और इद्दत (Iddat) की अवधि (3 माहवारी चक्र या 3 महीने) तक इंतजार करता है।
- यदि इस दौरान पति-पत्नी फिर से साथ आना चाहें, तो वे बिना नए निकाह के रह सकते हैं।
- यदि इद्दत पूरी हो जाती है और पति दोबारा संबंध नहीं बनाता, तो तलाक हो जाता है।
2. तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan)
- इसमें पति 3 बार तलाक कहता है लेकिन अलग-अलग समय पर (एक-एक महीने के अंतराल में)।
- यदि तीसरी बार तलाक कहने के बाद भी सुलह नहीं होती, तो तलाक हो जाता है।
- इस प्रक्रिया में पति को अपनी गलती सुधारने का अवसर मिलता है।
3. तलाक-ए-बिद्दत (Talaq-e-Biddat) – तीन तलाक (Instant Triple Talaq)
- इसमें पति एक ही समय में तीन बार “तलाक” कहकर विवाह समाप्त करने की कोशिश करता है।
- 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया और इसे आपराधिक कृत्य बना दिया गया।
- अब भारत में तीन तलाक गैर-कानूनी और दंडनीय अपराध है।
B. पत्नी द्वारा तलाक (Talaq by Wife)
1. खुला (Khula) – पत्नी द्वारा तलाक की मांग
- यदि पत्नी तलाक चाहती है, तो वह खुला (Khula) की मांग कर सकती है।
- इसके लिए पत्नी को अपने पति को कुछ आर्थिक मुआवजा (मेहर) वापस करना पड़ सकता है।
- पति की सहमति आवश्यक होती है, लेकिन कोर्ट इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
2. फस्ख (Faskh) – अदालत के माध्यम से तलाक
- यदि पति तलाक देने को तैयार नहीं है, तो पत्नी इस्लामिक अदालत या सिविल कोर्ट में तलाक की अर्जी दे सकती है।
- इस्लामिक कानून के तहत काज़ी या न्यायाधीश निर्णय लेते हैं।
- यह तब होता है जब पति क्रूरता करता है, मानसिक रूप से अस्वस्थ है, पत्नी की जरूरतें पूरी नहीं करता, या लापता हो जाता है।
3. मुबारा (Mubarat) – आपसी सहमति से तलाक
- यदि पति-पत्नी दोनों तलाक चाहते हैं, तो वे आपसी सहमति से विवाह समाप्त कर सकते हैं।
- इसमें किसी एक पक्ष की विशेष मांग नहीं होती, बल्कि दोनों ही अलग होना चाहते हैं।
2. मुस्लिम लॉ में तलाक की प्रक्रिया
तलाक-ए-अहसन या तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया
- पति पहली बार तलाक कहता है।
- पत्नी इद्दत की अवधि (3 महीने या 3 माहवारी) पूरा करती है।
- यदि पति-पत्नी फिर से साथ आना चाहते हैं, तो वे दोबारा निकाह के बिना साथ रह सकते हैं।
- यदि इद्दत पूरी हो जाती है और पति ने संबंध नहीं बनाया, तो तलाक हो जाता है।
खुला की प्रक्रिया
- पत्नी पति से तलाक की मांग करती है।
- यदि पति सहमत हो जाता है, तो खुला स्वीकृत हो जाता है।
- यदि पति सहमत नहीं होता, तो पत्नी अदालत जा सकती है।
- अदालत सबूतों के आधार पर तलाक की डिक्री जारी कर सकती है।
फस्ख (न्यायिक तलाक) की प्रक्रिया
- पत्नी अदालत या काज़ी के पास तलाक की याचिका दायर करती है।
- यदि पति की क्रूरता, लापता रहना, या अन्य कारण साबित हो जाते हैं, तो अदालत तलाक दे सकती है।
- यह प्रक्रिया न्यायिक तलाक की तरह चलती है।
3. मुस्लिम तलाक के बाद कानूनी अधिकार
इद्दत (Iddat) की अवधि
- तलाक के बाद महिला को 3 महीने या 3 माहवारी चक्र तक इंतजार करना होता है।
- यदि महिला गर्भवती है, तो बच्चे के जन्म तक इद्दत की अवधि बढ़ जाती है।
- इस दौरान महिला दूसरा विवाह नहीं कर सकती।
मेहर (Mahr) का अधिकार
- पत्नी को शादी के समय तय की गई मेहर की राशि तलाक के बाद भी मिलती है।
- यदि तलाक “खुला” के माध्यम से हुआ है, तो महिला को मेहर वापस करना पड़ सकता है।
गुजारा भत्ता (Maintenance) – मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम, 1986
- तलाक के बाद पत्नी इद्दत की अवधि तक ही भरण-पोषण की हकदार होती है।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो केस (1985) के फैसले के अनुसार, यदि महिला खुद की देखभाल नहीं कर सकती, तो उसे भरण-पोषण मिल सकता है।
बच्चों की कस्टडी
- इस्लामिक कानून के तहत, छोटे बच्चों की कस्टडी आमतौर पर मां को दी जाती है।
- बड़े लड़कों की कस्टडी पिता को दी जा सकती है, लेकिन कोर्ट बच्चे की भलाई को देखकर निर्णय करता है।
4. मुस्लिम लॉ में तलाक से जुड़े महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु
- तीन तलाक अब भारत में गैर-कानूनी है।
- मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक का अधिकार है, लेकिन उन्हें प्रक्रिया का पालन करना होता है।
- खुला और फस्ख महिलाओं के लिए तलाक के सबसे प्रमुख तरीके हैं।
- न्यायिक तलाक (फस्ख) में कोर्ट फैसला करता है और यह अधिक समय ले सकता है।
- तलाक के बाद गुजारा भत्ता केवल इद्दत की अवधि तक मिलता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार, महिला अधिक भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
निष्कर्ष
मुस्लिम कानून में तलाक की प्रक्रिया अन्य धर्मों की तुलना में भिन्न होती है। इसमें पति और पत्नी दोनों को तलाक का अधिकार दिया गया है, लेकिन उनकी प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं। तीन तलाक (Talaq-e-Biddat) अब गैर-कानूनी है, और मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक लेने के लिए कानूनी सहायता उपलब्ध है। यदि आप मुस्लिम तलाक से जुड़े किसी कानूनी मुद्दे का सामना कर रहे हैं, तो किसी विशेषज्ञ वकील की सहायता लेना जरूरी है।
अगर आपको इस विषय पर और अधिक जानकारी चाहिए, तो कमेंट करें!
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