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भारत में तलाक के प्रकार और प्रक्रिया (Divorce Types and Process in India)

भूमिका

भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन कई बार परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं कि पति-पत्नी को अलग होने का निर्णय लेना पड़ता है। भारतीय कानून के अनुसार, तलाक के कई प्रकार होते हैं, जो धर्म और विवाह अधिनियम के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इस लेख में हम विस्तार से तलाक के प्रकार और प्रक्रिया के बारे में समझेंगे।


1. भारत में तलाक के प्रकार

भारत में तलाक की प्रक्रिया मुख्य रूप से पति-पत्नी के धर्म और विवाह के कानून पर निर्भर करती है। तलाक को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

A. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce)

यह तलाक तब लिया जाता है जब दोनों पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं।

आपसी सहमति से तलाक की शर्तें:

  1. पति-पत्नी को कम से कम एक वर्ष तक अलग रहना चाहिए।
  2. दोनों को यह निर्णय लेना होगा कि वे अब साथ नहीं रह सकते।
  3. संपत्ति, बच्चों की कस्टडी और गुजारा भत्ता (alimony) पर सहमति होनी चाहिए।

आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया:

  1. संयुक्त याचिका (Joint Petition) दाखिल करें – पति-पत्नी कोर्ट में एक साथ याचिका दायर करते हैं।
  2. पहली सुनवाई (First Motion) – कोर्ट दोनों पक्षों की सहमति को रिकॉर्ड करता है।
  3. समयावधि (Cooling Period) – 6 महीने का समय दिया जाता है ताकि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकें।
  4. दूसरी सुनवाई (Second Motion) – यदि 6 महीने बाद भी दोनों तलाक चाहते हैं, तो कोर्ट तलाक की डिक्री जारी कर देता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • यह प्रक्रिया 6 महीने से 1 साल में पूरी हो सकती है।
  • आपसी सहमति से तलाक सबसे आसान और कम खर्चीली विधि होती है।

B. एकतरफा तलाक (Contested Divorce)

यदि केवल एक पक्ष तलाक चाहता है और दूसरा पक्ष सहमत नहीं है, तो इसे “एकतरफा तलाक” कहा जाता है।

एकतरफा तलाक के आधार:

भारतीय विवाह कानून के तहत, निम्नलिखित स्थितियों में एकतरफा तलाक का दावा किया जा सकता है:

  1. क्रूरता (Cruelty) – मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना (जैसे मारपीट, मानसिक उत्पीड़न)।
  2. व्यभिचार (Adultery) – अगर पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध में है।
  3. धर्म परिवर्तन (Conversion of Religion) – यदि पति या पत्नी बिना सहमति के धर्म बदल ले।
  4. मानसिक बीमारी (Mental Disorder) – यदि किसी पक्ष को गंभीर मानसिक बीमारी है, जिससे विवाहिक जीवन प्रभावित होता है।
  5. त्याग (Desertion) – यदि पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के कम से कम 2 साल से छोड़कर चला गया हो।
  6. नपुंसकता (Impotency) – यदि पति या पत्नी विवाह को सफलतापूर्वक नहीं निभा सकता हो।
  7. संक्रामक बीमारी (Incurable Disease) – गंभीर बीमारियों जैसे एचआईवी/एड्स, कुष्ठ रोग आदि।
  8. मृत्यु की अफवाह (Presumption of Death) – अगर कोई व्यक्ति 7 साल या उससे अधिक समय तक लापता है, तो उसे मृत मानकर तलाक लिया जा सकता है।

एकतरफा तलाक की प्रक्रिया:

  1. तलाक की याचिका दाखिल करें – जिस पक्ष को तलाक लेना है, वह कोर्ट में याचिका दायर करता है।
  2. कोर्ट नोटिस भेजता है – दूसरा पक्ष जवाब देने के लिए बुलाया जाता है।
  3. सुनवाई होती है – दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाती हैं और सबूतों की जांच होती है।
  4. अंतिम फैसला (Final Verdict) – अगर कोर्ट को उचित कारण लगता है, तो तलाक की डिक्री दे दी जाती है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • एकतरफा तलाक में अधिक समय लगता है (1 से 3 साल)।
  • यह जटिल और महंगा हो सकता है।
  • कोर्ट में पर्याप्त सबूत प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।

2. धर्म के आधार पर तलाक की प्रक्रिया

A. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक

  • हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय के लिए यह कानून लागू होता है।
  • इसमें आपसी सहमति और एकतरफा तलाक दोनों शामिल हैं।
  • धारा 13(1) और 13(2) के तहत तलाक के प्रावधान दिए गए हैं।

B. मुस्लिम लॉ के तहत तलाक

  • मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, खुला, फस्ख, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन आदि प्रकार होते हैं।
  • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत “तीन तलाक” अब गैरकानूनी है।

C. ईसाई विवाह अधिनियम, 1869

  • व्यभिचार, क्रूरता, त्याग जैसे आधारों पर तलाक लिया जा सकता है।
  • तलाक के लिए चर्च ट्रिब्यूनल और कोर्ट दोनों का सहारा लिया जा सकता है।

D. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936

  • पारसी समुदाय के लिए विशेष प्रावधान होते हैं, जिनमें पारसी पंचायती अदालत में तलाक की सुनवाई होती है।

E. विशेष विवाह अधिनियम, 1954

  • यदि पति-पत्नी अलग-अलग धर्मों के हैं और उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी की है, तो तलाक की प्रक्रिया इसी कानून के तहत होगी।

3. तलाक के बाद कानूनी अधिकार और दायित्व

गुजारा भत्ता (Alimony/Maintenance)

  • तलाक के बाद पत्नी या पति को गुजारा भत्ता मिल सकता है।
  • यह कोर्ट पर निर्भर करता है कि वह कितनी राशि तय करता है।

बच्चों की कस्टडी (Child Custody)

  • तलाक के बाद बच्चे की देखभाल कौन करेगा, यह कोर्ट तय करता है।
  • माता-पिता की वित्तीय स्थिति, बच्चे की उम्र और भलाई को ध्यान में रखा जाता है।

संपत्ति का विभाजन

  • तलाक के बाद संपत्ति के अधिकारों का निपटारा कानूनी प्रक्रिया के तहत किया जाता है।

निष्कर्ष

भारत में तलाक एक कानूनी प्रक्रिया है, जो अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानूनों के तहत संचालित होती है। आपसी सहमति से तलाक लेना आसान होता है, जबकि एकतरफा तलाक जटिल और समय लेने वाला हो सकता है। तलाक से जुड़ी सभी कानूनी प्रक्रियाओं को समझकर सही निर्णय लेना जरूरी होता है।

अगर आपको तलाक से जुड़ी कोई और जानकारी चाहिए, तो कमेंट करके बता सकते हैं!


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