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Christian Marriage Act, 1872 – धारा 4 (Churches in which Marriages may be solemnized / चर्च जहाँ विवाह संपन्न हो सकते हैं)

परिचय

भारत में ईसाई विवाहों को कानूनी रूप से मान्यता देने के लिए Christian Marriage Act, 1872 में विवाह संपन्न करने के लिए उपयुक्त स्थलों को निर्दिष्ट किया गया है। धारा 4 (Section 4: Churches in which Marriages may be solemnized / चर्च जहाँ विवाह संपन्न हो सकते हैं) यह स्पष्ट करती है कि ईसाई विवाह किन स्थलों पर संपन्न किए जा सकते हैं। यह धारा विवाह प्रक्रिया को कानूनी रूप से सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


धारा 4: चर्च जहाँ विवाह संपन्न हो सकते हैं

(Section 4: Churches in which Marriages may be solemnized / चर्च जहाँ विवाह संपन्न हो सकते हैं)

धारा 4 के अनुसार, ईसाई विवाह निम्नलिखित स्थानों पर संपन्न किए जा सकते हैं:

  1. पंजीकृत चर्च (Registered Churches):
    • किसी भी मान्यता प्राप्त चर्च या धार्मिक स्थल में विवाह किया जा सकता है।
    • चर्च को सरकार या विवाह रजिस्ट्रार के पास पंजीकृत होना चाहिए।
  2. सरकार द्वारा अनुमोदित स्थान (Places Approved by the Government):
    • सरकार द्वारा अधिकृत अन्य धार्मिक स्थलों में भी विवाह संपन्न किया जा सकता है।
    • यदि चर्च के बाहर किसी अन्य स्थान पर विवाह किया जाना है, तो इसके लिए सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी।
  3. मंत्रियों या पादरियों द्वारा अधिकृत स्थान (Places Authorized by Ministers or Priests):
    • यदि किसी चर्च का मंत्री (Minister) या पादरी (Priest) किसी स्थान को विवाह के लिए अधिकृत करता है, तो वहाँ भी विवाह संपन्न किया जा सकता है।
  4. विशेष अनुमति वाले स्थान (Special Licensed Places):
    • कुछ मामलों में, विवाह किसी अन्य स्थान पर भी किया जा सकता है, यदि सरकार द्वारा इसके लिए विशेष लाइसेंस प्राप्त किया गया हो।

धारा 4 का उद्देश्य

  • यह सुनिश्चित करना कि ईसाई विवाह मान्यता प्राप्त और कानूनी रूप से स्वीकृत स्थलों पर ही संपन्न हों
  • विवाह प्रक्रिया को व्यवस्थित और प्रमाणिक बनाना।
  • यह रोक लगाना कि कोई भी विवाह गैर-कानूनी या अनधिकृत स्थानों पर संपन्न न हो।

धारा 4 के प्रमुख बिंदु

  • चर्च में विवाह: ईसाई विवाह केवल पंजीकृत चर्च या अनुमोदित धार्मिक स्थलों पर किया जा सकता है।
  • सरकारी स्वीकृति आवश्यक: यदि चर्च के बाहर विवाह करना हो, तो इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी।
  • विशेष लाइसेंस का प्रावधान: कुछ परिस्थितियों में, अन्य स्थानों पर विवाह करने के लिए विशेष लाइसेंस लिया जा सकता है।
  • धार्मिक अधिकारी की भूमिका: चर्च के मंत्री या पादरी द्वारा विवाह स्थलों को अधिकृत किया जा सकता है।

धारा 4 का महत्व

धारा 4 यह सुनिश्चित करती है कि ईसाई विवाह केवल अधिकृत स्थलों पर संपन्न हों, जिससे उनकी कानूनी वैधता बनी रहे। यह विवाह प्रक्रिया को पारदर्शी और सुरक्षित बनाती है।


निष्कर्ष

Christian Marriage Act, 1872 की धारा 4 यह निर्धारित करती है कि ईसाई विवाह कहाँ संपन्न किए जा सकते हैं। यह विवाह प्रक्रिया की कानूनी वैधता को बनाए रखने और विवाह को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्थानों तक सीमित रखने में सहायता करती है। यदि आप ईसाई विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो यह जानना आवश्यक है कि विवाह केवल अधिकृत चर्चों या सरकारी अनुमोदित स्थलों पर ही किया जाना चाहिए


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