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Christian Marriage Act, 1872 – धारा 3 (Marriage Registrars / विवाह रजिस्ट्रार)

परिचय

भारत में ईसाई विवाहों को कानूनी रूप से मान्यता देने के लिए Christian Marriage Act, 1872 में विवाह पंजीकरण की व्यवस्था की गई है। इसकी धारा 3 (Section 3: Marriage Registrars / विवाह रजिस्ट्रार) विवाह पंजीकरण अधिकारियों की नियुक्ति, उनकी भूमिका और अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करती है। यह धारा विवाहों के विधिवत पंजीकरण और वैधता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


धारा 3: विवाह रजिस्ट्रार की नियुक्ति

(Section 3: Marriage Registrars / विवाह रजिस्ट्रार)

धारा 3 के अंतर्गत, सरकार द्वारा विवाह रजिस्ट्रारों की नियुक्ति की जाती है जो ईसाई विवाहों का पंजीकरण करने के लिए अधिकृत होते हैं। इस धारा के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. सरकारी नियुक्ति: सरकार उन क्षेत्रों में विवाह रजिस्ट्रार नियुक्त कर सकती है जहाँ ईसाई समुदाय निवास करता है और इस अधिनियम के तहत विवाह संपन्न होते हैं।
  2. कार्य क्षेत्र: प्रत्येक विवाह रजिस्ट्रार को एक निश्चित क्षेत्र सौंपा जाता है, जिसके अंतर्गत वे विवाहों को पंजीकृत करने के लिए अधिकृत होते हैं।
  3. धार्मिक पादरी भी रजिस्ट्रार हो सकते हैं: यदि सरकार उचित समझे, तो चर्च के धर्मगुरु (पादरी) को भी विवाह रजिस्ट्रार के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है।
  4. सरकारी निगरानी: विवाह रजिस्ट्रारों को सरकार के निर्देशों के अनुसार कार्य करना होता है, और वे विवाहों से संबंधित रिकॉर्ड को अद्यतन और संरक्षित करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

धारा 3 का उद्देश्य

  • विवाह पंजीकरण प्रक्रिया को पारदर्शी और कानूनी रूप से वैध बनाना।
  • विवाहों का एक आधिकारिक रिकॉर्ड बनाए रखना, जिससे भविष्य में किसी भी कानूनी विवाद से बचा जा सके।
  • यह सुनिश्चित करना कि विवाह केवल अधिकृत व्यक्तियों द्वारा संपन्न और पंजीकृत किए जाएँ।

धारा 3 के प्रमुख बिंदु

  • विवाह रजिस्ट्रार की नियुक्ति: सरकार विशेष क्षेत्रों में विवाह रजिस्ट्रारों की नियुक्ति करती है।
  • विवाह पंजीकरण की निगरानी: विवाह रजिस्ट्रार कानूनी रूप से विवाहों को पंजीकृत करने और रिकॉर्ड रखने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  • धार्मिक पादरियों को विशेष अधिकार: कुछ मामलों में, चर्च के धर्मगुरुओं को भी विवाह रजिस्ट्रार के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है।
  • विवाह का कानूनी सत्यापन: विवाह रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकृत विवाह कानूनी रूप से मान्य और प्रमाणिक माने जाते हैं।

धारा 3 का महत्व

धारा 3 विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को कानूनी रूप से व्यवस्थित करने में मदद करती है। यह सुनिश्चित करती है कि ईसाई समुदाय के विवाहों का विधिवत रिकॉर्ड रखा जाए, जिससे वैवाहिक स्थिति से जुड़े कानूनी अधिकारों की सुरक्षा हो सके।


निष्कर्ष

Christian Marriage Act, 1872 की धारा 3 विवाह रजिस्ट्रारों की नियुक्ति और उनकी जिम्मेदारियों को स्पष्ट करती है। यह धारा विवाहों के कानूनी सत्यापन और पंजीकरण को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि आप ईसाई विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो विवाह रजिस्ट्रार से संबंधित इस कानूनी प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।


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