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Christian Marriage Act, 1872 – धारा 2 (Interpretation / व्याख्या)

परिचय

भारत में ईसाई समुदाय के विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए Christian Marriage Act, 1872 लागू किया गया था। इस अधिनियम की धारा 2 (Section 2: Interpretation / व्याख्या) विभिन्न कानूनी शब्दों की परिभाषा प्रदान करती है, जिससे इस कानून को समझना और लागू करना आसान हो जाता है।


धारा 2: व्याख्या

(Section 2: Interpretation / व्याख्या)

धारा 2 में इस अधिनियम के तहत प्रयुक्त विभिन्न कानूनी शब्दों की व्याख्या की गई है। यह धारा यह स्पष्ट करती है कि अधिनियम में प्रयुक्त कुछ विशेष शब्दों का क्या अर्थ है और वे किस संदर्भ में लागू होते हैं। प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:

  • “Christians” (ईसाई): इसमें वे सभी व्यक्ति शामिल हैं जो स्वयं को ईसाई धर्म का अनुयायी मानते हैं, चाहे वे जन्म से ईसाई हों या धर्मांतरण करके ईसाई बने हों।
  • “Church” (चर्च): किसी भी संप्रदाय या संप्रदायों के धार्मिक पूजा स्थल, जहाँ ईसाई विवाह संपन्न किए जा सकते हैं।
  • “Minister of Religion” (धर्मगुरु/पादरी): कोई भी व्यक्ति जो चर्च द्वारा अधिकृत है और विवाह कराने का अधिकार रखता है।
  • “Registrar of Marriage” (विवाह रजिस्ट्रार): सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी जो विवाहों के पंजीकरण के लिए उत्तरदायी होता है।
  • “Minor” (अवयस्क): कोई भी व्यक्ति जो 21 वर्ष की आयु से कम है।
  • “District Court” (जिला न्यायालय): वह अदालत जो विवाह संबंधी विवादों और दावों की सुनवाई करने के लिए अधिकृत होती है।
  • “Indian Christian” (भारतीय ईसाई): वे व्यक्ति जो भारत में रहते हैं और ईसाई धर्म को मानते हैं।

धारा 2 का महत्व

धारा 2 Christian Marriage Act, 1872 की आधारभूत धारा है क्योंकि यह अधिनियम में प्रयुक्त कानूनी शब्दों को स्पष्ट करती है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों, संस्थानों, और प्रक्रियाओं की व्याख्या एकरूपता से हो और कोई भ्रम न रहे।


निष्कर्ष

Christian Marriage Act, 1872 की धारा 2 इस अधिनियम के कानूनी शब्दों को परिभाषित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि इनकी व्याख्या स्पष्ट और सुसंगत हो। यह धारा इस अधिनियम के सुचारू कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है और इससे जुड़ी सभी प्रक्रियाओं को समझने में सहायक होती है। यदि आप इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो इस धारा को समझना आवश्यक है।


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