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तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी और परवरिश के कानूनी अधिकार (Child Custody and Parenting Rights After Divorce)

भूमिका

तलाक के बाद सबसे संवेदनशील मुद्दा बच्चों की कस्टडी (Child Custody) और उनके भरण-पोषण (Parenting & Maintenance) का होता है। माता-पिता के अलग होने का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। भारतीय कानून में बच्चों की कस्टडी से जुड़े कई नियम और प्रावधान हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे। यह लेख तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी, माता-पिता के कानूनी अधिकार, गुजारा भत्ता, और परवरिश से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तृत रूप से समझाएगा।


1. भारतीय कानून में बच्चों की कस्टडी के प्रकार (Types of Child Custody in Indian Law)

तलाक के बाद बच्चों की देखभाल के लिए चार प्रकार की कस्टडी (Custody) दी जा सकती है:

A. संपूर्ण कस्टडी (Sole Custody)

  • जब किसी एक माता-पिता को बच्चे की संपूर्ण कस्टडी दी जाती है और दूसरे माता-पिता को उससे मिलने का सीमित अधिकार मिलता है।
  • यह तब दिया जाता है जब दूसरे माता-पिता को बच्चे के लिए अनुपयुक्त समझा जाता है (जैसे घरेलू हिंसा, नशे की लत, मानसिक अस्थिरता, आदि)।

B. संयुक्त कस्टडी (Joint Custody)

  • इसमें बच्चे की जिम्मेदारी माता-पिता के बीच साझा की जाती है, लेकिन बच्चा एक निश्चित समय पर एक माता-पिता के साथ और बाकी समय दूसरे माता-पिता के साथ रहता है।
  • यह बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए बेहतर माना जाता है।

C. तीसरे व्यक्ति को कस्टडी (Third-Party Custody)

  • जब दोनों माता-पिता बच्चे की जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ होते हैं, तो कस्टडी किसी अन्य रिश्तेदार या अभिभावक को दी जाती है।

D. विजिटेशन राइट्स (Visitation Rights)

  • यदि एक माता-पिता को कस्टडी नहीं दी जाती, तो उसे बच्चे से मिलने और उसके साथ समय बिताने का अधिकार मिलता है।

2. कस्टडी का निर्णय कैसे लिया जाता है? (How is Custody Decided?)

कोर्ट मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों के आधार पर कस्टडी का निर्णय लेता है:

  1. बच्चे का सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child)
    • बच्चा किसके साथ सुरक्षित और खुश रहेगा।
    • उसकी शिक्षा, देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाती है।
  2. माता-पिता की आर्थिक स्थिति (Financial Stability of Parents)
    • माता-पिता में से कौन बेहतर आर्थिक सहायता प्रदान कर सकता है।
    • माता-पिता की आय, संपत्ति और अन्य वित्तीय संसाधनों को ध्यान में रखा जाता है।
  3. बच्चे की इच्छा (Child’s Preference)
    • यदि बच्चा 9-10 वर्ष से अधिक का है, तो उसकी इच्छा को भी कोर्ट द्वारा सुना जाता है।
  4. माता-पिता का चरित्र और पारिवारिक माहौल (Parent’s Character & Family Environment)
    • माता-पिता का आपराधिक रिकॉर्ड, नैतिक चरित्र, और पारिवारिक माहौल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  5. माता-पिता की उपलब्धता (Parental Availability)
    • माता-पिता में से कौन बच्चे की देखभाल के लिए अधिक समय दे सकता है।

3. विभिन्न धर्मों के अनुसार कस्टडी के नियम (Custody Rules as per Different Religions)

A. हिंदू कानून (Hindu Law) – हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और संरक्षकता अधिनियम, 1890

  • हिंदू बच्चों की कस्टडी संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 (Guardian and Wards Act, 1890) के तहत तय की जाती है।
  • 5 साल से कम उम्र के बच्चे आमतौर पर माँ को दिए जाते हैं।
  • यदि बच्चा बड़ा हो जाता है, तो कोर्ट बच्चे के हित के अनुसार निर्णय लेता है।

B. मुस्लिम कानून (Muslim Law)

  • हदीस और शरिया कानून के अनुसार माँ को बेटे की कस्टडी 7 साल तक और बेटी की कस्टडी शादी होने तक मिल सकती है।
  • पिता को कानूनी अभिभावक माना जाता है और उसे बच्चे के भरण-पोषण का खर्च देना होता है।
  • मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भी पत्नी को गुजारा भत्ता और बच्चों की देखभाल का अधिकार मिल सकता है।

C. ईसाई और पारसी कानून (Christian & Parsi Law)

  • कस्टडी का निर्णय गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत किया जाता है।
  • कोर्ट बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखकर निर्णय लेता है।

4. बच्चों के भरण-पोषण का अधिकार (Child Maintenance Rights After Divorce)

A. भरण-पोषण किसे देना होगा?

  • यदि कस्टडी माँ को दी गई है, तो पिता को बच्चे के पालन-पोषण के लिए गुजारा भत्ता (Child Support) देना होगा।
  • यदि पिता के पास कस्टडी है और माँ आर्थिक रूप से सक्षम है, तो उसे भी भरण-पोषण देना पड़ सकता है।

B. भरण-पोषण की गणना कैसे होती है?

गुजारा भत्ता की राशि माता-पिता की आय और खर्चों पर निर्भर करती है। कुछ महत्वपूर्ण कारक:

  1. माता-पिता की आय और संपत्ति
  2. बच्चे की शिक्षा, चिकित्सा और अन्य खर्च
  3. बच्चे की जीवनशैली और भविष्य की जरूरतें।

C. क्या भरण-पोषण न मिलने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?

  • यदि पिता या माँ भरण-पोषण देने से इनकार करता है, तो पीड़ित पक्ष कोर्ट में धारा 125 CrPC के तहत केस कर सकता है।
  • कोर्ट भरण-पोषण की वसूली के लिए माता-पिता की संपत्ति को जब्त करने का आदेश दे सकता है।

5. कस्टडी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण कोर्ट फैसले (Important Court Judgments on Custody)

  1. गीता हरि हरन बनाम भारतीय रिजर्व बैंक (1999) – कोर्ट ने कहा कि बच्चे का सर्वोत्तम हित सर्वोपरि होगा, चाहे माँ हो या पिता।
  2. डिवोर्स केस में ज्वाइंट कस्टडी – हाल के फैसलों में कोर्ट संयुक्त कस्टडी (Joint Custody) को प्राथमिकता दे रहा है।

6. तलाक के बाद माता-पिता के लिए सलाह (Advice for Parents After Divorce)

  1. बच्चों के प्रति कटुता न रखें – बच्चे को माता-पिता के विवाद से दूर रखें।
  2. संवाद बनाए रखें – माता-पिता के बीच संचार बच्चे की भलाई के लिए जरूरी है।
  3. कानूनी सलाह लें – कस्टडी और भरण-पोषण के लिए वकील की मदद लें।

निष्कर्ष

तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी और भरण-पोषण का निर्णय पूरी तरह बच्चे के सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child) को ध्यान में रखकर किया जाता है। भारतीय कानून माता-पिता दोनों को बच्चे की देखभाल और आर्थिक सहायता देने की जिम्मेदारी देता है। यदि कोई पक्ष अपने अधिकारों से वंचित महसूस करता है, तो उसे कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

अगर आपके पास इस विषय पर कोई सवाल है, तो हमें कमेंट करके बताएं!


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