अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता (Untouchability) को समाप्त करता है और इसे दंडनीय अपराध घोषित करता है। यह अनुच्छेद सामाजिक समानता और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
1. अनुच्छेद 17 का सार
• भारत में अस्पृश्यता (छुआछूत) पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है।
• कोई भी व्यक्ति अस्पृश्यता का पालन नहीं कर सकता और न ही किसी को छूआछूत के आधार पर वंचित कर सकता है।
• यदि कोई अस्पृश्यता का पालन करता है, तो उसे कानूनी दंड मिल सकता है।
• यह अनुच्छेद नागरिकों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का हिस्सा है और इसे किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता।
2. अस्पृश्यता का अर्थ
• अस्पृश्यता का मतलब किसी व्यक्ति या समुदाय को केवल जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर नीचा दिखाना और उनसे भेदभाव करना है।
• प्राचीन काल में अस्पृश्य माने जाने वाले लोगों को मंदिरों में प्रवेश करने, सार्वजनिक कुएं, तालाब, स्कूल, सड़क और अन्य सुविधाओं के उपयोग से वंचित किया जाता था।
3. अस्पृश्यता उन्मूलन कानून
(1) अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955
• इस कानून को 1955 में बनाया गया ताकि अनुच्छेद 17 को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।
• इसमें अस्पृश्यता को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया।
• 1976 में इसका नाम बदलकर ‘सिविल राइट्स एक्ट, 1955’ कर दिया गया।
(2) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
• यह कानून अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार और भेदभाव को रोकने के लिए बनाया गया।
• यदि कोई व्यक्ति SC/ST वर्ग के किसी व्यक्ति को छुआछूत के आधार पर अपमानित करता है या उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाती है।
4. अस्पृश्यता से जुड़े प्रमुख न्यायिक फैसले
(1) चंपकम दोरैराजन बनाम तमिलनाडु राज्य (1951)
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार जाति आधारित भेदभाव नहीं कर सकती और सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए।
(2) सत्यमूर्ति बनाम भारत सरकार (1973)
• यह फैसला अनुच्छेद 17 को मौलिक अधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है और सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त किया जाए।
(3) काशी नाथ बनाम भारत सरकार (2005)
• इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अस्पृश्यता को गंभीर अपराध माना और सरकार को इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का आदेश दिया।
5. अनुच्छेद 17 का महत्व
• सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है।
• अस्पृश्यता को खत्म करके हर व्यक्ति को समान अधिकार प्रदान करता है।
• संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
• यदि कोई व्यक्ति अस्पृश्यता का पालन करता है, तो उसे कानूनी दंड दिया जाता है।
6. निष्कर्ष
• अनुच्छेद 17 भारत में सामाजिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
• यह जातिगत भेदभाव को समाप्त करता है और सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है।
• इसकी प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कानून बनाए गए हैं, और सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।
• हालांकि, आज भी समाज में अस्पृश्यता के कुछ रूप देखे जाते हैं, जिनके खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
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