तलाक में महिलाओं के अधिकार (Legal Rights of Women in Divorce Cases) – महिला सुरक्षा कानून, घरेलू हिंसा, और स्ट्रीधन अधिकार।
भूमिका
भारत में तलाक एक संवेदनशील विषय है, खासकर महिलाओं के लिए। तलाक के दौरान महिलाओं को कई कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं, जो उन्हें वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह अधिकार उन्हें भरण-पोषण (Alimony), संपत्ति पर हक, स्ट्रीधन (Stridhan), बच्चों की कस्टडी, और घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
इस लेख में हम तलाक के दौरान महिलाओं को मिलने वाले कानूनी अधिकारों, सुरक्षा कानूनों और कानूनी सहायताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. महिलाओं के तलाक संबंधी मुख्य कानूनी अधिकार
(A) भरण-पोषण (Alimony / Maintenance) का अधिकार
➡️ तलाक के बाद, महिला को पति से आर्थिक सहायता (Maintenance) पाने का कानूनी अधिकार होता है।
➡️ धारा 125 CrPC (Criminal Procedure Code) के तहत अगर महिला आर्थिक रूप से कमजोर है, तो पति को गुजारा भत्ता देना होगा।
➡️ भरण-पोषण की राशि तय करने के लिए कोर्ट पति की आय, महिला की आर्थिक स्थिति और जीवनशैली को ध्यान में रखता है।
➡️ यदि महिला खुद कमाती है लेकिन पति की आय अधिक है, तब भी वह गुजारा भत्ता मांग सकती है।
➡️ भरण-पोषण दो तरह का हो सकता है:
- अस्थायी (Interim Maintenance) – तलाक की प्रक्रिया के दौरान दिया जाता है।
- स्थायी (Permanent Maintenance) – तलाक के बाद मासिक या एकमुश्त राशि दी जाती है।
(B) स्ट्रीधन (Stridhan) पर अधिकार
➡️ स्ट्रीधन वह संपत्ति या उपहार होते हैं, जो महिला को शादी के समय या बाद में मिले होते हैं।
➡️ पति, ससुराल पक्ष या कोई अन्य व्यक्ति महिला के स्ट्रीधन पर हक नहीं जमा सकता।
➡️ धारा 14 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत महिला को अपने स्ट्रीधन पर पूरा अधिकार होता है।
➡️ यदि पति या ससुराल पक्ष स्ट्रीधन लौटाने से इनकार करता है, तो महिला IPC की धारा 406 के तहत मामला दर्ज करा सकती है।
(C) संपत्ति पर अधिकार (Right to Property)
➡️ हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, तलाक के बाद महिला को पति की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता।
➡️ लेकिन अगर पति ने महिला के नाम से संपत्ति खरीदी है या महिला ने उसमें योगदान दिया है, तो वह उस पर दावा कर सकती है।
➡️ मुस्लिम महिलाओं को महर (Mehr) की राशि का कानूनी अधिकार होता है, जो शादी के समय पति द्वारा तय की जाती है।
(D) बच्चों की कस्टडी (Child Custody Rights)
➡️ तलाक के बाद, बच्चों की कस्टडी का प्राथमिक अधिकार मां को दिया जाता है, खासकर यदि बच्चा छोटा है।
➡️ गौरडियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत, कोर्ट बच्चे के सर्वोत्तम हित (Best Interest of the Child) को ध्यान में रखकर फैसला करता है।
➡️ यदि पिता अधिक सक्षम है, तो बच्चे की कस्टडी उसे दी जा सकती है, लेकिन महिला को बच्चे से मिलने (Visitation Rights) का अधिकार रहता है।
➡️ महिला बच्चे के पालन-पोषण के लिए भरण-पोषण (Child Maintenance) की मांग भी कर सकती है।
(E) घरेलू हिंसा से सुरक्षा (Protection Against Domestic Violence)
➡️ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) के तहत, महिला को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक हिंसा से सुरक्षा का अधिकार है।
➡️ यदि महिला को तलाक के दौरान या बाद में पति या ससुराल पक्ष से खतरा है, तो वह परिवार न्यायालय (Family Court) या महिला आयोग में शिकायत दर्ज करा सकती है।
➡️ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत, महिला को ससुराल में रहने का अधिकार (Right to Residence) भी मिलता है, भले ही घर पति के नाम पर हो।
(F) कार्यस्थल पर सुरक्षा (Protection at Workplace)
➡️ तलाक के बाद, यदि महिला कामकाजी है, तो उसे कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए “POSH Act, 2013” (Prevention of Sexual Harassment Act) के तहत सुरक्षा दी जाती है।
➡️ कोई भी कंपनी या संस्थान महिला की तलाक की स्थिति का गलत फायदा नहीं उठा सकता।
2. तलाक के दौरान महिलाओं को मिलने वाली कानूनी सहायता (Legal Aid for Women in Divorce Cases)
(A) निशुल्क कानूनी सहायता (Free Legal Aid)
➡️ अगर महिला आर्थिक रूप से कमजोर है, तो वह निःशुल्क कानूनी सहायता (Free Legal Aid) लेने के लिए “राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA)” में आवेदन कर सकती है।
➡️ कई महिला संगठनों (NCW, महिला हेल्पलाइन, NGO) से कानूनी मदद भी ली जा सकती है।
(B) महिला हेल्पलाइन नंबर और कानूनी संगठनों की मदद
✅ महिला हेल्पलाइन नंबर: 181
✅ राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) शिकायत नंबर: 011-26942369, 011-26944754
✅ पुलिस हेल्पलाइन: 100
✅ निःशुल्क कानूनी सहायता (NALSA): 15100
3. तलाक के दौरान महिलाओं को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
✔ महत्वपूर्ण दस्तावेजों की कॉपी सुरक्षित रखें – शादी का प्रमाण पत्र, बैंक स्टेटमेंट, संपत्ति दस्तावेज, वकील की रिपोर्ट आदि।
✔ भावनात्मक रूप से मजबूत रहें – तलाक एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, इसलिए मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार रहें।
✔ अच्छे वकील की सहायता लें – अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रियाओं को समझने के लिए।
✔ समझौते से पहले सोचें – किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले सभी शर्तों को अच्छी तरह समझ लें।
✔ बच्चों के भविष्य की योजना बनाएं – उनकी शिक्षा, भरण-पोषण और सुरक्षा का ध्यान रखें।
निष्कर्ष (Conclusion)
🔹 तलाक के दौरान महिलाओं को भरण-पोषण, स्ट्रीधन, बच्चों की कस्टडी और संपत्ति पर कानूनी अधिकार मिलते हैं।
🔹 घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और CrPC धारा 125 जैसी कानूनी धाराएँ महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
🔹 महिला आयोग (NCW) और अन्य सरकारी संगठन निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करते हैं।
🔹 किसी भी कानूनी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से पहले अच्छी तरह सोचें और कानूनी सलाह लें।
अगर आपके कोई सवाल हैं, तो हमें कमेंट में बताएं!
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