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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक (Divorce Under Hindu Marriage Act, 1955)

भूमिका

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के विवाह और तलाक से जुड़े नियमों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के तहत तलाक लेने के लिए कानूनी आधार और प्रक्रिया स्पष्ट रूप से दी गई है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक कैसे लिया जा सकता है, इसके लिए क्या शर्तें होती हैं और कोर्ट में इसकी प्रक्रिया क्या है।


1. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के प्रकार

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

A. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) – धारा 13B

यदि पति-पत्नी दोनों विवाह समाप्त करना चाहते हैं और तलाक के लिए सहमत हैं, तो वे धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं।

शर्तें:

  1. पति-पत्नी कम से कम 1 साल से अलग रह रहे हों।
  2. दोनों यह मानते हों कि वे अब साथ नहीं रह सकते।
  3. संपत्ति, बच्चों की कस्टडी और गुजारा भत्ता पर सहमति हो।

प्रक्रिया:

  1. संयुक्त याचिका दाखिल करें – दोनों पति-पत्नी परिवार न्यायालय (Family Court) में एक साथ याचिका दायर करते हैं।
  2. पहली सुनवाई (First Motion) – कोर्ट में याचिका दाखिल करने के बाद, दोनों पक्षों की सहमति दर्ज की जाती है।
  3. 6 महीने का ‘Cooling Period’ – कोर्ट दोनों को पुनर्विचार करने के लिए 6 महीने का समय देता है।
  4. दूसरी सुनवाई (Second Motion) – अगर 6 महीने बाद भी दोनों तलाक चाहते हैं, तो कोर्ट तलाक की डिक्री (decree) जारी कर देता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • 6 महीने का समय जरूरी नहीं है, अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ता सुधारने की कोई संभावना नहीं है, तो इसे हटाया जा सकता है।
  • यह प्रक्रिया 6 महीने से 1 साल में पूरी हो सकती है।
  • यह तरीका सबसे आसान, कम खर्चीला और कम तनावपूर्ण होता है।

B. एकतरफा तलाक (Contested Divorce) – धारा 13(1) और 13(2)

यदि पति या पत्नी में से कोई एक तलाक चाहता है लेकिन दूसरा पक्ष सहमत नहीं है, तो इसे “एकतरफा तलाक” कहा जाता है। इसके लिए कुछ कानूनी आधार होने जरूरी होते हैं।

तलाक के कानूनी आधार – धारा 13(1):

  1. क्रूरता (Cruelty) – मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना (जैसे मारपीट, गाली-गलौज, मानसिक तनाव)।
  2. व्यभिचार (Adultery) – यदि पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध में है।
  3. त्याग (Desertion) – यदि पति या पत्नी कम से कम 2 साल से छोड़कर चला गया हो।
  4. धर्म परिवर्तन (Conversion of Religion) – यदि पति या पत्नी बिना सहमति के धर्म बदल ले।
  5. मानसिक विकार (Mental Disorder) – अगर कोई मानसिक रूप से अस्वस्थ है और यह विवाह में समस्या पैदा कर रहा है।
  6. नपुंसकता (Impotency) – यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से विवाहित जीवन निभाने में असमर्थ हो।
  7. संक्रामक बीमारी (Incurable Disease) – गंभीर बीमारियों जैसे एचआईवी/एड्स, कुष्ठ रोग आदि।
  8. मृत्यु की अफवाह (Presumption of Death) – यदि कोई व्यक्ति 7 साल या उससे अधिक समय तक लापता है, तो उसे मृत मानकर तलाक लिया जा सकता है।

पत्नी के लिए विशेष अधिकार – धारा 13(2):

हिंदू विवाह अधिनियम में पत्नी को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं, जिनके आधार पर वह तलाक ले सकती है:

  1. यदि पति के विवाह के समय किसी अन्य महिला से विवाह हुआ था।
  2. यदि पति ने बलात्कार, व्यभिचार या अनैतिक संबंध बनाए हों।
  3. यदि पति ने पत्नी को छोड़ दिया हो और कम से कम 2 साल तक कोई संपर्क न किया हो।

2. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की प्रक्रिया

  1. तलाक की याचिका दायर करें – जिस पक्ष को तलाक चाहिए, वह संबंधित पारिवारिक न्यायालय (Family Court) में आवेदन करता है।
  2. कोर्ट नोटिस भेजता है – दूसरा पक्ष कोर्ट में जवाब देने के लिए बुलाया जाता है।
  3. दोनों पक्षों की सुनवाई होती है – कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलें और सबूतों की जांच करता है।
  4. समझौता करने की कोशिश (Mediation) – कोर्ट पहले कोशिश करता है कि पति-पत्नी सुलह कर लें।
  5. अंतिम फैसला (Final Verdict) – यदि सुलह नहीं होती, तो कोर्ट तलाक की डिक्री जारी कर देता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • एकतरफा तलाक में समय अधिक लगता है (1 से 3 साल तक)।
  • कोर्ट पर्याप्त सबूत मांगता है।
  • यह प्रक्रिया महंगी और जटिल हो सकती है।

3. तलाक के बाद कानूनी अधिकार

गुजारा भत्ता (Alimony/Maintenance) – धारा 25

  • यदि पत्नी खुद की देखभाल नहीं कर सकती, तो पति को गुजारा भत्ता देना होगा।
  • इसका निर्धारण पति की आय, पत्नी की आवश्यकताओं और जीवनशैली को देखकर किया जाता है।

बच्चों की कस्टडी (Child Custody) – धारा 26

  • बच्चों की कस्टडी माता-पिता में से किसे मिलेगी, यह कोर्ट तय करता है।
  • बच्चे की शिक्षा, परवरिश और सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है।

संपत्ति का विभाजन

  • हिंदू विवाह अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि तलाक के बाद संपत्ति कैसे बांटी जाएगी।
  • हालांकि, पत्नी कोर्ट में संपत्ति का हिस्सा मांग सकती है, विशेष रूप से यदि वह आर्थिक रूप से कमजोर है।

4. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु

  • तलाक के मामलों में ‘सुलह’ की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है – कोर्ट पहले पति-पत्नी को सुलह करने का अवसर देता है।
  • अगर एक पक्ष अनुपस्थित रहता है, तो भी तलाक दिया जा सकता है।
  • यदि पति-पत्नी दोनों भारत से बाहर रहते हैं, तो वे ऑनलाइन तलाक की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।

निष्कर्ष

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक की प्रक्रिया कानूनी रूप से संरचित है, जो विवाह को समाप्त करने के लिए उचित आधार और प्रक्रिया प्रदान करती है। आपसी सहमति से तलाक लेना आसान और कम समय लेने वाला होता है, जबकि एकतरफा तलाक कठिन और समय लेने वाला हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति तलाक लेना चाहता है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया और अपने अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

अगर आपको इस विषय पर और अधिक जानकारी चाहिए, तो कमेंट करें!


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