अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Article 21) देश के प्रत्येक व्यक्ति को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Right to Life and Personal Liberty)” का अधिकार प्रदान करता है। यह संविधान में दिए गए सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है और इसे “भारत में मौलिक अधिकारों का हृदय (Heart of Fundamental Rights)” कहा जाता है।
1. अनुच्छेद 21 का मूल प्रावधान
अनुच्छेद 21 कहता है:
“किसी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा।”
इसका अर्थ यह है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता को केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही छीना जा सकता है।
2. अनुच्छेद 21 के दो प्रमुख तत्व
(1) जीवन का अधिकार (Right to Life)
• यह केवल शारीरिक रूप से जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि सम्मानजनक और गरिमामय जीवन जीने का अधिकार भी शामिल करता है।
• इसमें भोजन, स्वास्थ्य, स्वच्छ पर्यावरण, आवास, शिक्षा, प्रदूषण मुक्त जीवन, गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार आदि अधिकार शामिल किए गए हैं।
(2) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Personal Liberty)
• इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी मर्जी से अपने जीवन के फैसले ले सकता है और उसे मनमाने तरीके से गिरफ्तार या कैद नहीं किया जा सकता।
• किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार या दंडित करने के लिए एक न्यायिक प्रक्रिया (Due Process of Law) का पालन करना अनिवार्य है।
3. अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शामिल महत्वपूर्ण अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कई नए अधिकार इसमें जोड़े हैं, जिनमें शामिल हैं:
- सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार (Right to Live with Dignity)
- प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार (Right to Clean Environment)
- निजता का अधिकार (Right to Privacy)
- भोजन और पानी का अधिकार (Right to Food and Water)
- स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार (Right to Health)
- शिक्षा का अधिकार (Right to Education) – (अनुच्छेद 21A के तहत)
- त्वरित न्याय का अधिकार (Right to Speedy Trial)
- मृत्यु पूर्व गरिमा का अधिकार (Right to Die with Dignity) – इच्छामृत्यु (Euthanasia)
- बाल श्रम से मुक्ति का अधिकार (Right against Child Labour)
- यातना और अमानवीय व्यवहार से मुक्ति का अधिकार (Right against Torture)
4. अनुच्छेद 21 से जुड़े महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले
(1) ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा देता है।
- लेकिन बाद में इस व्याख्या को बदला गया और “उचित प्रक्रिया” (Due Process) का सिद्धांत अपनाया गया।
(2) मेनका गांधी बनाम भारत सरकार (1978)
- इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 केवल “कानूनी प्रक्रिया” (Procedure Established by Law) तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें “न्यायपूर्ण और उचित प्रक्रिया” (Fair and Just Procedure) भी आवश्यक होगी।
- सरकार बिना उचित कारण के किसी व्यक्ति के अधिकारों को नहीं छीन सकती।
(3) विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए।
(4) के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) – निजता का अधिकार
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।
- सरकार बिना उचित कारण के किसी की निजी जानकारी को उजागर नहीं कर सकती।
(5) अर्जुन गोपाल बनाम भारत सरकार (2017) – पर्यावरण और जीवन का अधिकार
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ हवा में सांस लेना जीवन के अधिकार का हिस्सा है, और पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया।
(6) कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार (2018) – इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को “सम्मानजनक मृत्यु” (Dignified Death) का अधिकार है।
5. अनुच्छेद 21 का महत्व
- भारत के हर नागरिक और गैर-नागरिक (Foreigner) को लागू होता है।
- सभी मौलिक अधिकारों में सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण अधिकार है।
- न्यायपालिका ने इसे समय-समय पर और अधिक मजबूत बनाया है।
- जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने और सरकार के मनमाने कार्यों पर रोक लगाने का काम करता है।
6. निष्कर्ष
अनुच्छेद 21 केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं देता, बल्कि एक सम्मानजनक, गरिमापूर्ण और सुरक्षित जीवन का अधिकार सुनिश्चित करता है। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों ने इस अनुच्छेद को और मजबूत बनाया है और इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, निजता, यातना से मुक्ति जैसे कई अधिकार शामिल किए हैं।
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