अनुच्छेद 20: अपराधों से संबंधित मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Article 20) नागरिकों को दंडात्मक कानूनों (Penal Laws) से संबंधित सुरक्षा प्रदान करता है। यह उन मामलों में लागू होता है जहां किसी व्यक्ति पर आपराधिक आरोप लगाया जाता है।
अनुच्छेद 20 के तहत किसी भी व्यक्ति को तीन प्रमुख सुरक्षा (Protections) दी गई हैं ताकि उसे अनुचित सजा या अन्याय से बचाया जा सके।
1. अनुच्छेद 20 के तहत दी गई तीन प्रमुख सुरक्षा
(1) एक्स पोस्ट फैक्टो कानून (Ex-Post Facto Law) – अनुच्छेद 20(1)
• किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता, जो अपराध किए जाने के समय कानूनन अपराध नहीं था।
• यदि अपराध किए जाने के बाद कोई नया कानून बनता है या पहले से मौजूद कानून में संशोधन होता है, तो व्यक्ति को पीछे जाकर (Retrospectively) दंडित नहीं किया जा सकता।
• हालांकि, यदि नया कानून सजा को हल्का करता है, तो आरोपी को इसका लाभ मिल सकता है।
उदाहरण:
- यदि 2022 में कोई कार्य वैध था लेकिन 2023 में इसे अपराध घोषित किया गया, तो उस व्यक्ति को 2022 में किए गए कार्य के लिए सजा नहीं दी जा सकती।
- लेकिन अगर 2023 में सजा को कम कर दिया गया, तो पहले से सजा काट रहे आरोपी को इसका लाभ मिलेगा।
(2) दोहरे दंड (Double Jeopardy) से संरक्षण – अनुच्छेद 20(2)
• किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती।
• यदि किसी अदालत ने किसी अपराध में एक बार दोषी या निर्दोष ठहरा दिया, तो उसी अपराध के लिए उसे फिर से दंडित नहीं किया जा सकता।
• यह सिद्धांत “नemo debet bis vexari pro eadem causa” (किसी को एक ही कारण से दो बार परेशान नहीं किया जा सकता) पर आधारित है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह केवल आपराधिक मामलों (Criminal Cases) में लागू होता है, न कि सिविल मामलों (Civil Cases) में।
- यह केवल न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Punishment) पर लागू होता है, न कि विभागीय या प्रशासनिक दंड (Departmental Punishment) पर।
उदाहरण:
- यदि किसी व्यक्ति को चोरी के मामले में अदालत ने दोषमुक्त कर दिया, तो उसे दोबारा उसी चोरी के मामले में गिरफ्तार कर सजा नहीं दी जा सकती।
- लेकिन, यदि कोई व्यक्ति सरकारी कर्मचारी है और घूस लेने के कारण उसे नौकरी से निकाल दिया गया, तो बाद में उसे आपराधिक मुकदमे में भी सजा मिल सकती है, क्योंकि यह विभागीय कार्रवाई थी, न कि न्यायिक सजा।
(3) आत्म-अभियोग से सुरक्षा (Protection Against Self-Incrimination) – अनुच्छेद 20(3)
• किसी भी व्यक्ति को अपने ही खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
• इसका अर्थ है कि कोई भी आरोपी व्यक्ति अपने खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
• यह सिद्धांत “No one shall be compelled to be a witness against himself” (कोई भी स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं होगा) पर आधारित है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह सुरक्षा केवल आपराधिक मामलों में दी गई है, सिविल मामलों में नहीं।
- यह केवल बयानों पर लागू होती है, भौतिक सबूतों (जैसे – फिंगरप्रिंट, ब्लड टेस्ट, DNA टेस्ट) पर नहीं।
- नार्को टेस्ट और पॉलिग्राफ टेस्ट को भी सुप्रीम कोर्ट ने आत्म-अभियोग के अंतर्गत माना है और इसे बिना सहमति के करवाना असंवैधानिक है।
उदाहरण:
- पुलिस किसी भी आरोपी से यह नहीं कह सकती कि वह स्वयं अपराध स्वीकार कर ले।
- लेकिन, यदि अदालत का आदेश हो, तो आरोपी का ब्लड टेस्ट, फिंगरप्रिंट या DNA टेस्ट किया जा सकता है।
2. अनुच्छेद 20 से जुड़े महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले
(1) केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) – देशद्रोह कानून पर फैसला
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून पीछे जाकर (Retrospectively) किसी व्यक्ति को दंडित नहीं कर सकता।
(2) एम. पी. शर्मा बनाम सतिश चंद्र (1954) – आत्म-अभियोग से सुरक्षा
• कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, लेकिन उसके पास मौजूद दस्तावेज मांगे जा सकते हैं।
(3) वी. एस. कोकजे बनाम भारत सरकार (1999) – दोहरे दंड से संरक्षण
• कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि विभागीय जांच हुई है, तो आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।
(4) सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) – नार्को टेस्ट और पॉलिग्राफ टेस्ट
• सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि बिना आरोपी की सहमति के नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिंग या पॉलिग्राफ टेस्ट करना अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है।
3. अनुच्छेद 20 का महत्व
- यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांत को मजबूत करता है।
- यह कानून के दुरुपयोग और मनमाने अभियोजन को रोकता है।
- यह किसी भी नागरिक को अवैध रूप से सजा देने से बचाता है।
- यह आरोपियों को जबरदस्ती अपराध स्वीकार करवाने से बचाता है।
4. निष्कर्ष
• अनुच्छेद 20 भारतीय नागरिकों को दंडात्मक कानूनों से सुरक्षा देता है और यह केवल आपराधिक मामलों में लागू होता है।
• यह सरकार या पुलिस को अनावश्यक शक्तियाँ देने से रोकता है।
• इस अनुच्छेद के तहत व्यक्ति को तीन प्रमुख अधिकार दिए गए हैं – (1) पिछले कानूनों के आधार पर सजा नहीं, (2) एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं, और (3) खुद के खिलाफ गवाही देने की बाध्यता नहीं।
Leave a Reply