मुस्लिम विवाह और भरण-पोषण (Maintenance Rights)
परिचय
मुस्लिम विवाह (Nikah) इस्लामिक कानून के तहत एक पवित्र अनुबंध (Sacred Contract) है, जिसमें पति-पत्नी के अधिकार और कर्तव्य निर्धारित होते हैं। यदि विवाह टूट जाता है और तलाक हो जाता है, तो पत्नी को भरण-पोषण (Maintenance) पाने का कानूनी अधिकार होता है।
इस्लामी कानून, भारतीय संविधान और विभिन्न न्यायिक फैसलों ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए भरण-पोषण के अधिकार दिए हैं। हालाँकि, यह मुद्दा भारत में क़ानूनी और धार्मिक विवादों का विषय भी रहा है, खासकर शाह बानो केस (Shah Bano Case, 1985) के बाद।
1. मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार
तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण के अधिकार इस्लामी कानून और भारतीय कानून दोनों के तहत प्राप्त होते हैं।
(A) इस्लामी कानून के अनुसार भरण-पोषण
✅ इस्लाम में पति को तलाक के बाद पत्नी के लिए एक निश्चित समय तक नफ्का (Nafqah) या भरण-पोषण देने का दायित्व होता है।
✅ यह भरण-पोषण मुख्य रूप से इद्दत (Iddat) की अवधि तक दिया जाता है, जो तीन मासिक धर्म (Menstrual Cycles) या गर्भवती होने की स्थिति में बच्चे के जन्म तक होती है।
✅ इसके बाद, इस्लामी कानून के अनुसार, पति पर आगे का भरण-पोषण देने की कोई बाध्यता नहीं होती, लेकिन बच्चों की जिम्मेदारी पति पर होती है।
(B) भारतीय कानून के अनुसार भरण-पोषण
✅ धारा 125, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC, Section 125) – यह धारा धर्म, जाति, संप्रदाय की परवाह किए बिना हर तलाकशुदा महिला को भरण-पोषण का अधिकार देती है। यदि महिला आर्थिक रूप से असमर्थ है, तो वह अपने पूर्व पति से भरण-पोषण की माँग कर सकती है।
✅ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 – यह कानून मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण के लिए उनके पति, बच्चों, माता-पिता या वक्फ बोर्ड से सहायता लेने की अनुमति देता है।
2. तलाकशुदा महिलाओं के अधिकार
तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को निम्नलिखित कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं:
(A) इद्दत की अवधि में भरण-पोषण (Maintenance during Iddat)
✅ तलाक के बाद, महिला को इद्दत की अवधि (Iddat Period) तक पति से भरण-पोषण मिलता है।
✅ यदि महिला गर्भवती है, तो उसे बच्चे के जन्म तक भरण-पोषण दिया जाता है।
(B) बच्चों के भरण-पोषण का अधिकार (Child Maintenance Rights)
✅ तलाक के बाद यदि बच्चे माँ के साथ रहते हैं, तो उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी पिता पर होती है।
✅ इस्लामी कानून और भारतीय न्यायपालिका दोनों पिता को बच्चों के खर्च उठाने के लिए बाध्य करते हैं।
(C) महिला के पास अन्य स्रोतों से सहायता का अधिकार
✅ यदि पति तलाक के बाद भरण-पोषण नहीं देता, तो मुस्लिम महिला अपने बच्चों, माता-पिता या वक्फ बोर्ड से भरण-पोषण की माँग कर सकती है।
✅ यह प्रावधान मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत दिया गया है।
(D) पुनर्विवाह (Re-Marriage) का अधिकार
✅ तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह कर सकती है और दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र होती है।
✅ इस्लाम में उसे किसी भी व्यक्ति से दोबारा निकाह करने की अनुमति दी गई है।
(E) संपत्ति के अधिकार (Property Rights)
✅ तलाक के बाद मुस्लिम महिला को पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता।
✅ लेकिन अगर पति की मृत्यु हो जाती है और तलाक अभी प्रभावी नहीं हुआ था, तो पत्नी को पति की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है।
शाह बानो केस और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
1. शाह बानो केस: एक ऐतिहासिक मामला
शाह बानो बनाम मोहम्मद अहमद खान (Shah Bano v. Mohammed Ahmed Khan, 1985) भारत के सबसे चर्चित और ऐतिहासिक मामलों में से एक है, जिसने मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकारों को लेकर पूरे देश में बहस छेड़ दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
✅ शाह बानो एक 62 वर्षीय मुस्लिम महिला थीं, जिन्हें उनके पति ने तीन तलाक देकर छोड़ दिया था।
✅ तलाक के बाद, पति ने भरण-पोषण देने से मना कर दिया।
✅ शाह बानो ने धारा 125, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC, Section 125) के तहत भरण-पोषण की माँग की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला (1985)
✅ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 CrPC सभी महिलाओं पर लागू होती है, चाहे वे किसी भी धर्म की हों।
✅ कोर्ट ने यह भी कहा कि मुस्लिम पुरुषों को तलाकशुदा पत्नी को इद्दत के बाद भी भरण-पोषण देना चाहिए अगर वह आर्थिक रूप से असमर्थ है।
✅ यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को सशक्त बनाने वाला था, लेकिन इससे मुस्लिम धार्मिक संगठनों में असंतोष फैल गया।
2. मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986
शाह बानो केस के फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय में भारी विरोध हुआ, जिसके बाद राजीव गांधी सरकार ने 1986 में “मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम” पारित किया।
अधिनियम की प्रमुख बातें:
✅ इस अधिनियम के तहत मुस्लिम पुरुष को केवल इद्दत की अवधि तक ही भरण-पोषण देने का दायित्व दिया गया।
✅ इसके बाद महिला को भरण-पोषण के लिए अपने बच्चों, माता-पिता या वक्फ बोर्ड पर निर्भर रहना पड़ा।
✅ यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर करने के लिए लाया गया, क्योंकि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पति की जिम्मेदारी को सीमित करता था।
3. शाह बानो केस का प्रभाव और बाद के फैसले
✅ 1990 के बाद सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में कहा गया कि धारा 125 CrPC धर्म से ऊपर है और यह सभी महिलाओं पर लागू होगी।
✅ 2019 में ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) को अपराध घोषित कर दिया गया, जिससे मुस्लिम महिलाओं को और अधिक कानूनी सुरक्षा मिली।
निष्कर्ष
✅ मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण और तलाक के बाद अधिकार इस्लामी और भारतीय कानूनों दोनों के तहत प्राप्त हैं।
✅ शाह बानो केस ने महिलाओं के अधिकारों को मजबूत किया और उन्हें न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
✅ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 ने कुछ हद तक महिलाओं के अधिकारों को सीमित कर दिया, लेकिन बाद के फैसलों ने उन्हें फिर से मज़बूत किया।
✅ आज मुस्लिम महिलाएँ तलाक के बाद भी न्यायालय से उचित भरण-पोषण प्राप्त कर सकती हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बन सकें।
Related Post – Muslim Marriage Law
- मुस्लिम विवाह कानून – परिचय (Muslim Marriage Law in India)
- मुस्लिम विवाह की आवश्यक शर्तें ( Necessary conditions of Muslim marriage )
- मुस्लिम विवाह के प्रकार (types of muslim marriage)
- मेहर: मुस्लिम विवाह में दहेज नहीं, बल्कि एक अधिकार
- मुस्लिम विवाह में सहमति (Consent) का महत्व ( Importance of Consent in Muslim Marriage )
- मुस्लिम विवाह में गवाहों की आवश्यकता (Requirement of witnesses in a Muslim marriage)
- निकाहनामा (Marriage Contract) का महत्व
- मुस्लिम विवाह : निकाह में मेहर (Mahr) का महत्व
- मुस्लिम विवाह में ‘इद्दत’ (Iddat) का अर्थ, नियम और महत्व
- मुस्लिम विवाह में बहुविवाह (Polygamy) का नियम और शर्तें
- मुस्लिम विवाह में तलाक (Divorce) के प्रकार और प्रक्रिया
- तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन: कानूनी रूप से वैध तरीके ( Talaq-e-Ahsan and Talaq-e-Hasan )
- मुस्लिम विवाह – तीन तलाक (Triple Talaq): अब अपराध क्यों?
- खुला (Khula): जब महिला खुद तलाक मांगे
- मुस्लिम महिलाओं के लिए न्यायिक तलाक (Judicial Divorce)
- मुस्लिम विवाह और भरण-पोषण (Maintenance Rights)
- मुस्लिम विवाह में विरासत और संपत्ति अधिकार ( Inheritance and Property Rights in Muslim Marriage )
- स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मुस्लिम विवाह ( Muslim marriage under Special Marriage Act )
- मुस्लिम विवाह और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ( Muslim marriage and Supreme Court’s historic judgement )
- तलाक और सामाजिक प्रभाव (Social and Psychological Impact of Divorce)
- लिव-इन रिलेशनशिप और तलाक (Live-in Relationship and Its Legal Status in India)
Leave a Reply