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मुस्लिम विवाह : निकाह में मेहर (Mahr) का महत्व

निकाह में मेहर (Mahr) का महत्व

परिचय

इस्लामिक विवाह (Nikah) में मेहर (Mahr) एक महत्वपूर्ण अनिवार्यता होती है। यह एक वित्तीय सुरक्षा है, जिसे पति अपनी पत्नी को विवाह के समय या बाद में देता है। मेहर केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि पत्नी के आर्थिक अधिकार और सम्मान का प्रतीक है।


1. मेहर क्या होता है?

मेहर वह धनराशि या संपत्ति है, जो पति द्वारा पत्नी को विवाह के समय या बाद में प्रदान की जाती है।
✅ यह शरीयत (Islamic Law) के अनुसार अनिवार्य है और इसे विवाह की एक मुख्य शर्त माना जाता है।
✅ मेहर पत्नी का व्यक्तिगत अधिकार (Legal Right) होता है, और वह इसे अपने अनुसार इस्तेमाल कर सकती है।
✅ यह किसी भी रूप में हो सकता है, जैसे –

  • नकद (Cash)
  • गहने (Jewelry)
  • संपत्ति (Property)
  • कोई मूल्यवान वस्तु (Valuable Assets)

2. मेहर के प्रकार

(A) मौजम्मल मेहर (Prompt Mahr)

✔️ यह वह मेहर होता है, जिसे पति को निकाह के तुरंत बाद या पत्नी की मांग पर तत्काल देना होता है।
✔️ यदि पत्नी चाहे, तो वह इसे किसी भी समय मांग सकती है।
✔️ यह अधिक सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि पत्नी को विवाह के तुरंत बाद आर्थिक अधिकार मिल जाता है।

(B) मुअज्जल मेहर (Deferred Mahr)

✔️ यह वह मेहर होता है, जिसे पति को भविष्य में किसी समय देना होता है, जैसे –

  • तलाक (Divorce) की स्थिति में।
  • पति की मृत्यु के बाद, पत्नी को उसकी संपत्ति से दिया जाता है।
    ✔️ पत्नी इस मेहर को कभी भी मांग सकती है, जब तक कि इसे चुकता नहीं किया गया हो।
    ✔️ यह आमतौर पर वित्तीय रूप से कमजोर पतियों को राहत देने के लिए रखा जाता है।

3. मेहर की राशि कितनी होनी चाहिए?

✅ शरीयत में कोई निश्चित राशि निर्धारित नहीं की गई, लेकिन इसे पति की आर्थिक स्थिति और समाज के मानदंडों के अनुसार उचित रखा जाना चाहिए।
✅ इसे बहुत कम या बहुत अधिक नहीं होना चाहिए, बल्कि ऐसा होना चाहिए कि पति इसे आसानी से दे सके।
✅ ऐतिहासिक रूप से, पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने कम मेहर को बेहतर बताया, ताकि विवाह को सरल बनाया जा सके।


4. मेहर न देने पर क्या होगा?

⚠️ मेहर देना अनिवार्य है, और इसे रोका नहीं जा सकता।
⚠️ यदि पति मेहर देने से इनकार करता है, तो पत्नी कानूनी कार्रवाई कर सकती है
⚠️ भारत में, यदि पति तलाक देता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो पत्नी को मेहर की पूरी राशि मुस्लिम पर्सनल लॉ (Shariat Application Act, 1937) के तहत मिलती है।
⚠️ अदालत में भी पत्नी अपने मेहर का दावा कर सकती है, और पति को इसे चुकाना पड़ेगा।


5. क्या पत्नी मेहर माफ कर सकती है?

✔️ हाँ, पत्नी स्वेच्छा से (Voluntarily) अपना मेहर माफ कर सकती है।
✔️ लेकिन किसी भी दबाव या जोर-जबरदस्ती से माफ किया गया मेहर अमान्य (Invalid) होगा।
✔️ यदि पत्नी माफ करना चाहे, तो इसे लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।


6. तलाक के बाद मेहर का क्या होगा?

✔️ यदि पति ने मेहर नहीं दिया और तलाक हो गया, तो उसे तलाक के बाद मेहर चुकाना होगा।
✔️ यदि मेहर मौजम्मल (Prompt) था, तो उसे तुरंत दिया जाना चाहिए।
✔️ यदि मुअज्जल (Deferred) था, तो तलाक के बाद भी इसका भुगतान करना अनिवार्य होगा।
✔️ यदि विवाह रद्द (Annulment) हो जाता है और कोई शारीरिक संबंध नहीं बना था, तो मेहर आधा या पूरा माफ हो सकता है (कानून और शरीयत के अनुसार)।


7. न्यायालय में मेहर की मान्यता

⚖️ भारतीय कानून के तहत, मुस्लिम महिलाओं को मेहर की मांग करने का पूरा अधिकार है।
⚖️ यदि पति मेहर नहीं देता, तो पत्नी अदालत में दावा कर सकती है।
⚖️ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने मेहर को महिला का कानूनी अधिकार माना है।
⚖️ यदि पति की मृत्यु हो जाती है, तो पत्नी को विरासत (Inheritance) के हिस्से से पहले मेहर मिलना चाहिए।


8. मेहर और दहेज में क्या अंतर है?

मेहरदहेज (Dowry)
यह पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है।यह पत्नी के परिवार द्वारा पति को दिया जाता है।
यह महिला का कानूनी अधिकार है।यह महिला के परिवार पर सामाजिक दबाव है।
शरीयत में इसे अनिवार्य किया गया है।शरीयत और कानून में दहेज को गलत माना गया है।
यह विवाह का एक अनिवार्य हिस्सा है।यह एक सामाजिक कुप्रथा है।

निष्कर्ष

मेहर मुस्लिम विवाह में एक अनिवार्य शर्त है, जो पत्नी के आर्थिक सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करता है।
✅ यह पत्नी का व्यक्तिगत और कानूनी अधिकार होता है, जिसे वह कभी भी मांग सकती है।
✅ मेहर को देने में देरी या इनकार करने पर पत्नी कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
✅ यह दहेज से पूरी तरह अलग होता है और इसका उद्देश्य महिला के आर्थिक अधिकारों की सुरक्षा करना है।

मेहर केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि विवाह में पत्नी के अधिकारों की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है।

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