हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 28: अपील का अधिकार (Right to Appeal)
परिचय:
धारा 28 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि पति या पत्नी को तलाक, विवाह रद्दीकरण (nullity of marriage) या न्यायिक पृथक्करण (judicial separation) के मामलों में अपील करने का अधिकार प्राप्त है।
यदि कोई पक्ष परिवार न्यायालय (Family Court) के फैसले से असंतुष्ट है, तो वह उच्च न्यायालय (High Court) में अपील कर सकता है।
धारा 28 के प्रमुख प्रावधान:
1. अपील करने का अधिकार (Right to Appeal)
✅ यदि किसी पक्ष को तलाक, विवाह रद्दीकरण या न्यायिक पृथक्करण से संबंधित पारित आदेश या निर्णय से असहमति है, तो वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
✅ अपील का अधिकार न्यायिक पृथक्करण (Section 10), विवाह को अमान्य घोषित करने (Section 11-12), और तलाक (Section 13) से संबंधित आदेशों पर लागू होता है।
✅ यह धारा केवल न्यायिक आदेशों (decrees) पर लागू होती है, न कि अस्थायी आदेशों (interim orders) पर।
उदाहरण: यदि किसी पति को तलाक का आदेश मिला है, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं है और मानता है कि आदेश अनुचित है, तो वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
2. अपील दाखिल करने की समय-सीमा (Time Limit for Appeal)
✅ 90 दिन (3 महीने) – परिवार न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ अपील 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में दायर करनी होगी।
✅ यदि उचित कारणों से अपील समय पर नहीं की जा सकी, तो उच्च न्यायालय इस अवधि को बढ़ा भी सकता है।
✅ यदि अपील की समय-सीमा समाप्त हो गई है और कोई ठोस कारण नहीं है, तो उच्च न्यायालय अपील स्वीकार नहीं करेगा।
महत्वपूर्ण: 90 दिनों की समय-सीमा परिवार न्यायालय द्वारा आदेश पारित किए जाने की तारीख से शुरू होती है।
3. कौन-कौन अपील कर सकता है?
✅ पति या पत्नी – यदि वे पारित आदेश से असंतुष्ट हैं।
✅ पार्टी का कानूनी उत्तराधिकारी – यदि अपील करने वाला पक्ष मृत हो गया हो, तो उसका उत्तराधिकारी अपील कर सकता है।
उदाहरण: यदि पत्नी को तलाक का आदेश मिला, लेकिन उसे लगता है कि पति ने झूठे आरोप लगाए हैं, तो वह उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकती है।
4. किस अदालत में अपील की जा सकती है?
✅ परिवार न्यायालय (Family Court) के आदेश के खिलाफ – अपील उच्च न्यायालय (High Court) में दायर की जाएगी।
✅ यदि उच्च न्यायालय के आदेश से कोई असंतुष्ट है, तो वह सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में अपील कर सकता है।
महत्वपूर्ण: यदि मामला बहुत जटिल है और इसमें संवैधानिक प्रश्न उठते हैं, तो अपील सीधे सर्वोच्च न्यायालय में भी की जा सकती है।
5. किन मामलों में अपील संभव नहीं है?
❌ यदि दोनों पक्ष अदालत के आदेश से सहमत हैं और समझौता कर चुके हैं।
❌ यदि आदेश केवल अस्थायी (interim) है और अंतिम निर्णय अभी बाकी है।
❌ यदि अपील की समय-सीमा (90 दिन) समाप्त हो गई है और कोई उचित कारण नहीं है।
उदाहरण: यदि पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण (maintenance) का आदेश दिया गया है, लेकिन अंतिम निर्णय बाकी है, तो इस पर अभी अपील नहीं की जा सकती।
6. क्या अपील के दौरान तलाक का आदेश लागू रहेगा?
✅ यदि तलाक के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जाती है, तो उच्च न्यायालय यह तय कर सकता है कि आदेश पर रोक (stay) लगाई जाए या नहीं।
✅ यदि रोक नहीं लगाई जाती, तो तलाक आदेश लागू रहेगा।
✅ यदि उच्च न्यायालय को लगता है कि तलाक का आदेश गलत था, तो वह इसे रद्द कर सकता है और विवाह फिर से वैध माना जाएगा।
उदाहरण: यदि पति को तलाक का आदेश मिला और उसने 30 दिन के भीतर अपील कर दी, तो अदालत अपील के नतीजे तक तलाक को स्थगित कर सकती है।
7. धारा 28 का महत्व (Importance of Section 28)
✅ यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई पक्ष तलाक, विवाह रद्दीकरण या न्यायिक पृथक्करण के आदेश से असहमत है, तो उसे न्याय पाने का एक और मौका मिले।
✅ यह धारा गलत निर्णयों को सुधारने में मदद करती है और न्याय की एक अतिरिक्त परत प्रदान करती है।
✅ यह अपील प्रक्रिया को एक निश्चित समय-सीमा में रखने के लिए एक 90 दिन की सीमा निर्धारित करती है, ताकि मामले अनावश्यक रूप से लंबित न रहें।
8. निष्कर्ष:
✅ धारा 28 हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अपील करने का अधिकार प्रदान करती है।
✅ तलाक, विवाह रद्दीकरण या न्यायिक पृथक्करण के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
✅ अपील 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होती है, हालांकि उचित कारण होने पर अदालत इसे बढ़ा सकती है।
✅ यदि उच्च न्यायालय के आदेश से कोई असंतुष्ट है, तो सर्वोच्च न्यायालय में भी अपील संभव है।
✅ यदि अपील की प्रक्रिया चल रही हो, तो उच्च न्यायालय तलाक आदेश पर रोक (stay) भी लगा सकता है।
धारा 28 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी पक्ष गलत आदेश का शिकार न हो और उसे न्याय पाने का पूरा अवसर मिले।
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