भारतीय संविधान की अनुसूची 5: अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय प्रशासन का प्रावधान
परिचय
भारतीय संविधान की अनुसूची 5 (Schedule 5) उन विशेष प्रावधानों को निर्धारित करती है, जो भारत के अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) और वहाँ रहने वाली आदिवासी जनजातियों (Scheduled Tribes – STs) के प्रशासन और कल्याण के लिए बनाए गए हैं।
यह अनुसूची आदिवासी समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाई गई थी, ताकि वे अपने प्राकृतिक संसाधनों और भूमि पर नियंत्रण बनाए रख सकें।
अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) का निर्धारण
संविधान के अनुसार, कुछ विशेष इलाकों को “अनुसूचित क्षेत्र” घोषित किया जाता है। इन क्षेत्रों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और समय-समय पर इसमें संशोधन किया जा सकता है।
अनुसूचित क्षेत्रों की विशेषताएँ
- इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों की भूमि और संसाधनों की रक्षा की जाती है।
- राज्यपाल (Governor) को विशेष शक्तियाँ दी गई हैं, ताकि वह इन क्षेत्रों के प्रशासन और विकास के लिए विशेष नियम बना सके।
- केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इन क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष योजनाएँ लागू करनी होती हैं।
- पंचायत (संशोधन) अधिनियम, 1996 (PESA Act) के तहत इन क्षेत्रों में पंचायतों को अधिक अधिकार दिए गए हैं।
अनुसूची 5 के प्रमुख प्रावधान
इस अनुसूची को चार भागों (Parts) में विभाजित किया गया है:
भाग 1: सामान्य प्रावधान
- इसमें उन राज्यों का उल्लेख किया गया है, जहाँ अनुसूचित क्षेत्रों की व्यवस्था लागू होती है।
- राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है या उसमें संशोधन कर सकता है।
भाग 2: अनुसूचित क्षेत्रों और उनके प्रशासन का प्रबंधन
- अनुसूचित क्षेत्रों में राज्यपाल को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
- राज्यपाल इन क्षेत्रों के लिए विशेष कानून बना सकता है और किसी भी सामान्य कानून को लागू करने या न करने का निर्णय ले सकता है।
- इन क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार राज्यों को विशेष सहायता प्रदान करती है।
भाग 3: अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Council – TAC)
- प्रत्येक राज्य, जहाँ अनुसूचित जनजातियाँ रहती हैं, वहाँ एक “जनजातीय सलाहकार परिषद” (TAC) बनाई जाती है।
- इस परिषद में अधिकतर सदस्य अनुसूचित जनजाति से होते हैं और इनका मुख्य कार्य सरकार को जनजातीय कल्याण से जुड़े मामलों में सलाह देना होता है।
- राज्यपाल TAC से परामर्श लेकर विशेष योजनाएँ लागू कर सकता है।
भाग 4: राष्ट्रपति को अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित शक्तियाँ
- राष्ट्रपति, किसी भी राज्यपाल को यह निर्देश दे सकता है कि वह अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विशेष नियम बनाए।
- राष्ट्रपति संसद को सुझाव दे सकता है कि इन क्षेत्रों के लिए विशेष कानून बनाए जाएँ।
भारत में अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas in India)
संविधान के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्र उन्हीं राज्यों में घोषित किए जाते हैं, जहाँ आदिवासी जनसंख्या अधिक है और उनकी संस्कृति, भूमि और संसाधनों की रक्षा की जरूरत है।
वर्तमान में अनुसूचित क्षेत्र निम्नलिखित राज्यों में हैं:
- आंध्र प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- गुजरात
- झारखंड
- मध्य प्रदेश
- महाराष्ट्र
- ओडिशा
- राजस्थान
- तेलंगाना
- त्रिपुरा
(अन्य राज्यों में भी अनुसूचित जनजातियाँ हैं, लेकिन उन्हें अनुसूचित क्षेत्र घोषित नहीं किया गया है।)
अनुसूचित क्षेत्रों में लागू विशेष कानून
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA Act):
- यह कानून आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं (Village Councils) को अधिक अधिकार देता है।
- ग्राम सभा को भूमि, वन और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्णय लेने की शक्ति मिलती है।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 (Forest Rights Act – FRA):
- यह कानून आदिवासियों को वन भूमि पर अधिकार देता है, जिससे वे अपनी आजीविका चला सकें।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006:
- यह अधिनियम वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को उनके भूमि अधिकार सुनिश्चित करता है।
राज्यपाल की विशेष शक्तियाँ
- राज्यपाल को अधिकार है कि वह इन क्षेत्रों में सामान्य कानूनों को लागू करने या न करने का निर्णय ले सकता है।
- राज्यपाल इन क्षेत्रों के लिए विशेष नियम बना सकता है, जिससे आदिवासियों के हितों की रक्षा हो सके।
- राज्यपाल केंद्र सरकार को सलाह दे सकता है कि इन क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष सहायता दी जाए।
संविधान संशोधन और अनुसूची 5 में बदलाव
समय-समय पर अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों के प्रशासन में सुधार के लिए संशोधन किए गए हैं:
- 73वां संविधान संशोधन (1992): पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया।
- PESA अधिनियम, 1996: ग्राम सभाओं को अधिक अधिकार मिले।
- 2006 का वन अधिकार अधिनियम: वन भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों को मान्यता दी गई।
निष्कर्ष
अनुसूची 5 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के संस्कृति, अधिकार और संसाधनों की रक्षा की जाए।
यह अनुसूचित जनजातियों को सशक्त बनाने, उनके परंपरागत अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

Leave a Reply