भूमिका:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) भारतीय हिंदू विवाह व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख कानून है। इसमें विवाह के लिए योग्यता, शर्तें, पंजीकरण, तलाक आदि से जुड़े प्रावधान शामिल हैं।
धारा 6 विशेष रूप से नाबालिगों के विवाह में अभिभावकों की भूमिका से संबंधित थी। हालांकि, इस धारा को बाद में हटा दिया गया, क्योंकि नाबालिगों से जुड़े अभिभावकत्व (Guardianship) के प्रावधानों को हिंदू नाबालिगता और अभिभावकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) में शामिल कर दिया गया।
धारा 6 का उद्देश्य और प्रावधान (हटाए जाने से पहले)
धारा 6 का मुख्य उद्देश्य उन मामलों को विनियमित करना था, जहां वर (लड़का) या वधू (लड़की) विवाह की वैध आयु (21 वर्ष और 18 वर्ष) से कम होते। इस स्थिति में, उनके विवाह के लिए अभिभावक की सहमति आवश्यक होती थी।
इस धारा के तहत, निम्नलिखित प्रावधान लागू होते थे:
- कौन होता था अभिभावक?
- यदि कोई वर या वधू नाबालिग होते, तो उनके विवाह के लिए उनके कानूनी अभिभावक (Guardian) की सहमति अनिवार्य थी।
- पिता को प्राथमिक अभिभावक माना जाता था।
- यदि पिता उपलब्ध नहीं होते, तो माता को अभिभावक का अधिकार प्राप्त होता।
- माता-पिता दोनों के न होने की स्थिति में, अन्य कानूनी संरक्षक (Legal Guardian) विवाह की सहमति प्रदान कर सकते थे।
- अभिभावक की सहमति क्यों आवश्यक थी?
- उस समय, विवाह के लिए निर्धारित कानूनी आयु वर के लिए 21 वर्ष और वधू के लिए 18 वर्ष थी।
- यदि किसी कारणवश नाबालिगों का विवाह हो रहा था, तो यह आवश्यक था कि उनके अभिभावक की सहमति प्राप्त की जाए, ताकि विवाह वैध माना जा सके।
- अभिभावक की सहमति न होने पर क्या होता?
- यदि किसी नाबालिग का विवाह बिना अभिभावक की सहमति के हो जाता, तो वह विवाह अवैध या विवादास्पद (Voidable) माना जा सकता था।
धारा 6 को क्यों हटाया गया?
धारा 6 को बाद में हिंदू विवाह अधिनियम से हटा दिया गया, इसके पीछे कई कारण थे:
- अभिभावकत्व से जुड़े कानून का अलग से प्रावधान:
- विवाह में अभिभावक की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए हिंदू नाबालिगता और अभिभावकता अधिनियम, 1956 लागू किया गया।
- इससे यह सुनिश्चित किया गया कि सभी प्रकार के अभिभावकत्व से जुड़े मामलों को एक ही कानून के तहत लाया जाए।
- विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु का निर्धारण:
- कानून में स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया गया कि वर के लिए 21 वर्ष और वधू के लिए 18 वर्ष से कम आयु में विवाह अवैध होगा।
- चूंकि नाबालिगों के विवाह को रोकने के लिए कठोर प्रावधान बनाए गए, इसलिए अभिभावक की सहमति का प्रावधान अप्रासंगिक हो गया।
- बाल विवाह रोकने के लिए सख्त कानूनों की जरूरत:
- सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) लागू किया, जिसमें बाल विवाह को गैरकानूनी और दंडनीय अपराध घोषित किया गया।
- इससे यह स्पष्ट हो गया कि नाबालिगों के विवाह को रोकने के लिए सिर्फ अभिभावक की सहमति पर्याप्त नहीं है, बल्कि कठोर दंडात्मक प्रावधान भी जरूरी हैं।
वर्तमान स्थिति: धारा 6 की जगह कौन सा कानून लागू है?
वर्तमान में, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 6 मौजूद नहीं है। अब नाबालिगों के विवाह और अभिभावकता से संबंधित मामलों को निम्नलिखित कानूनों के तहत नियंत्रित किया जाता है:
- हिंदू नाबालिगता और अभिभावकता अधिनियम, 1956:
- इस अधिनियम में माता-पिता और अन्य कानूनी अभिभावकों के अधिकार स्पष्ट किए गए हैं।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006:
- यह कानून 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह अवैध घोषित करता है।
- नाबालिगों का विवाह कराने वाले माता-पिता या अन्य व्यक्तियों के लिए सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860:
- बाल विवाह से संबंधित कुछ प्रावधान आईपीसी के तहत भी आते हैं, जैसे धोखाधड़ी, जबरन विवाह, और शोषण से जुड़ी धाराएं।
निष्कर्ष:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 6 पहले नाबालिगों के विवाह में अभिभावकों की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए लागू थी, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया।
अब, नाबालिगों के विवाह और अभिभावकत्व से जुड़े मामलों को अलग-अलग कानूनों के तहत नियंत्रित किया जाता है, और बाल विवाह को पूरी तरह से गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर विवाह वैध और कानूनी रूप से सुरक्षित हो, और किसी भी नाबालिग को जबरन विवाह के लिए बाध्य न किया जाए।
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