हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – धारा 5 (Section 5) का विवरण
परिचय
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भारतीय हिंदू विवाह की कानूनी रूपरेखा को निर्धारित करता है। धारा 5 (Section 5) विवाह की शर्तों (Conditions for a Hindu Marriage) को परिभाषित करती है। यह धारा यह निर्धारित करती है कि हिंदू विवाह कब वैध और मान्य होगा।
धारा 5: हिंदू विवाह की वैधता की शर्तें (Conditions for a Hindu Marriage)
धारा 5 के अनुसार, हिंदू विवाह वैध और कानूनी रूप से मान्य होने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:
1. विवाह करने वाले पति-पत्नी परस्पर पति-पत्नी के रूप में स्वीकार्य हों (Neither party has a spouse living at the time of the marriage)
- विवाह के समय पति या पत्नी में से किसी की भी पहले से कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए।
- यदि पहले से कोई विवाह मौजूद है और जीवनसाथी जीवित है, तो दूसरा विवाह अवैध और दंडनीय अपराध होगा (धारा 17 और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत)।
2. मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है (Mental Capacity to Consent)
विवाह करने वाले दोनों व्यक्तियों को मानसिक रूप से सक्षम होना चाहिए।
- वे मानसिक रूप से विकृत (unsound mind) नहीं होने चाहिए।
- वे किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित नहीं होने चाहिए, जिससे वे विवाह संबंधी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ हों।
- वे ऐसे मानसिक विकार से ग्रसित नहीं होने चाहिए, जिससे वे विवाह को समझने और सहमति देने में अक्षम हों।
3. निषिद्ध संबंधों में विवाह नहीं होना चाहिए (Not Within the Degrees of Prohibited Relationship)
- विवाह करने वाले पति-पत्नी एक-दूसरे के निषिद्ध संबंध (Prohibited Relationship) में नहीं होने चाहिए।
- यदि वे निषिद्ध संबंध में आते हैं, तो विवाह अवैध होगा, जब तक कि यह उनके प्रचलित रीति-रिवाजों और परंपराओं द्वारा अनुमत न हो।
- उदाहरण के लिए, भाई-बहन, चाचा-भतीजी, मामा-भांजी आदि के बीच विवाह हिंदू परंपरा में निषिद्ध माना गया है।
4. सपिंड संबंध (Sapinda Relationship) में विवाह नहीं होना चाहिए
- हिंदू कानून में सपिंड संबंध (Sapinda Relationship) के अंतर्गत तीन पीढ़ियों (पिता की ओर से) और पांच पीढ़ियों (माता की ओर से) तक विवाह वर्जित है।
- यदि विवाह करने वाले सपिंड संबंध में आते हैं, तो विवाह अवैध होगा, जब तक कि उनके रीति-रिवाज इसे अनुमति न देते हों।
5. विवाह की आयु पूरी होनी चाहिए (Age Requirement)
- विवाह के समय वर (लड़का) की आयु कम से कम 21 वर्ष और वधू (लड़की) की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
- यदि विवाह इन उम्र के पहले किया जाता है, तो यह बाल विवाह माना जाएगा, जो बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
धारा 5 का महत्व
- हिंदू विवाह की कानूनी मान्यता: यह धारा विवाह की वैधता को स्पष्ट करती है।
- सामाजिक बुराइयों को रोकना: बहुविवाह (Bigamy), बाल विवाह (Child Marriage), मानसिक अयोग्यता, और रक्त संबंधों में विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को रोकता है।
- संपत्ति एवं उत्तराधिकार अधिकारों की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि विवाह वैध हो, ताकि उत्तराधिकार, संपत्ति और परिवार से जुड़े अधिकार सुरक्षित रहें।
- समान अधिकार: यह धारा पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए समान नियम लागू करती है।
निष्कर्ष
धारा 5 हिंदू विवाह की मूलभूत शर्तों को निर्धारित करती है, जिससे विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है। यह विवाह के लिए उम्र, मानसिक स्थिति, वैवाहिक स्थिति और रक्त संबंधों से जुड़े प्रतिबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। यह हिंदू विवाह को एक संगठित, कानूनी और नैतिक व्यवस्था में बनाए रखने में सहायक है।
(नोट: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। कानूनी सलाह के लिए किसी विधि विशेषज्ञ से परामर्श करें।)
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